कई सरकारी बैंक जो रिजर्व बैंक की पाबंदियों की वजह से लोन नहीं बांट पा रहे हैं, उन्हें अगले महीने तक राहत मिल सकती है। ज़ी बिज़नेस को रिजर्व बैंक के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 31 जनवरी को रिज़र्व बैंक के बोर्ड ऑफ फाइनेंशियल सुपरविजन की मीटिंग में इस पर निर्णय लिया जाएगा। सूत्रों की मानें तो जिन बैंकों के डूबे कर्ज़ों में कमी आई है, पूंजी की स्थिति अच्छी है व वित्तीय स्थिति बेहतर हो रही है। ऐसे बैंकों को प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) से जल्द राहत दी जाएगी। प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन से बैंकों की स्वास्थ्य व न बिगड़े इसलिए लोन बांटने व गैर महत्वपूर्ण खर्चों पर रोक लग जाती है। सूत्रों की मानें तो प्रारम्भ में 3-4 बैंकों को इसके दायरे से बाहर लाया जा सकता है। इसका औपचारिक एलान 15 फरवरी के आसपास हो सकता है। दरअसल 9 फरवरी को रिज़र्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड की दिल्ली में मीटिंग होगी, जिसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री करेंगे। मुमकिन है कि सेंट्रल बोर्ड की हरी झंडी मिलने या फिर उसके पहले भी बैंकों के लिए इस राहत का एलान कर दिया जाए।
किन बैंकों को राहत संभव?
जिन बैंकों के बंधे हाथ खुलने की सबसे ज्यादा चर्चा है उनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया व कॉरपोरेशन बैंक प्रमुख हैं। सूत्रों की मानें तो गवर्नमेंट कई छोटे बैंकों में पूंजी डालकर उन्हें प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन से बाहर लाना चाहती है ताकि भविष्य में बड़े बैंकों के साथ मर्जर में दिक्कत न आए। हाल में बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक व विजया बैंक के विलय का निर्णय लिया गया है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मैनेजमेंट ने निर्बल हालत वाले देना बैंक के विलय को लेकर एतराज जताया था।
PCA था टकराव की वजह
दरअसल रिज़र्व बैंक व गवर्नमेंट के बीच टकराव की एक वजह 11 सरकारी बैंकों को प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन में डालना भी था। गवर्नमेंट की दलील थी कि 11 बैंकों पर लोन बांटने वदूसरी पाबंदियों से उद्योगों व दूसरे तबकों को कर्ज में दिक्कत हो रही है, जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। साथ ही बैंकों की कमाई भी प्रभावित हो रही है। क्योंकि बैंकों ने ग्राहकों से ऊंची ब्याज पर डिपॉजिट जुटाया है। लेकिन बैंक उस जमा के पैसे को लोन बांटकर कमाई नहीं कर पा रहे हैं। जबकि उन्हें जमा की रकम पर ब्याज भरना पड़ रहा है।
अभी थोड़ी राहत
गवर्नमेंट के दबाव व बैंकों की खस्ताहालत को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने थोड़ी सी राहत भी दी है। बैंकों को अब कोर कैपिटल पर कैपिटल कंजर्वेशन बफर यानि कठिन दिनों के लिए अलग से रखने वाली पूंजी की शर्त में छूट दी है। बैंकों को इस वर्ष मार्च तक कैपिटल कंजर्वेशन बफर को 2.5 प्रतिशत के स्तर पर लाना था। बैंक अब तक 1.875 प्रतिशत तक की शर्त पूरी कर चुके हैं। बाकी 0.625 प्रतिशत का बंदोवस्त मार्च 2019 तक व करना था। लेकिन अब इस शर्त को पूरी करने की मियाद बढ़ाकर मार्च 2020 कर दी गई है। इसका लाभ ये होगा कि बैंक इससे बची रकम का प्रयोग ज्यादा कर्ज बांटने में कर सकेंगे।
क्या है PCA?
रिज़र्व बैंक ने अप्रैल 2017 में प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन का नया नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसके तहत अलग अलग समय पर बैंकों पर पाबंदियां लगाई गईं थीं। ताकि स्थिति व न बिगड़े। जिसमें जोखिम वाले लोन बांटने, विस्तार करने के साथ ही नयी भर्तियों व नए खर्चों पर रोक लगाई गई थी। हालांकि प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन की शर्तों को लेकर भी गवर्नमेंट वरिज़र्व बैंक के बीच टकराव रहा है। गवर्नमेंट का मानना है कि रिज़र्व बैंक के नियम बहुत ज्यादा सख्त हैं। बेसेल 3 नियम जो संसार के बैंकों का पैमाना है उसके हिसाब से मिनिमम कॉमन इक्विटी 4.5 प्रतिशत होना चाहिए। लेकिन रिज़र्व बैंक ने इसे 5.5 प्रतिशत रखा है। इससे करीब 6 लाख करोड़ रुपए की रकम फ्री होगी, जिसे बैंक कर्ज बांटने के लिए प्रयोग कर पाएंगे। इस पर रिज़र्व बैंक की दलील ये है कि बैंक जितना डूबा कर्ज़ दिखाते हैं असलियम में वो उससे ज्यादा होती है। ऐसे में सुरक्षा कवच के तौर पर अलावा पूंजी रहनी चाहिए।