कुंभ में दाल-बाटी से अपनी भूख मिटा रहे विदेशी संत

 कुंभ की विविधता सिर्फ पंडालों या शिविरों तक सीमित नहीं, बल्कि संतों की रसोई में भी इसे चखा जा सकता है। खासकर विदेशी संतों के यहां तो बिना भारतीय मसालों से छौंका लगाए कुछ बनता ही नहीं। दाल, बाटी, चोखा, मटर-शाही पनीर की तो डिमांड रोज ही रहती है।
संगम की रेती पर विदेशी संत और उनके यूरोपीय भक्तगणों का व्यंजन इन दिनों काली मिर्च, जीरा, हल्दी, इलायची, सरसों, मगरैल, अदरक के बिना अधूरा है। इसके अलावा संतों की रसोई का जायका बढ़ाने के लिए राजस्थान एवं गुजरात के खानसामे भी आए हैं।

कुंभ मेला में पायलट बाबा के शिविर में इन दिनों विदेशी भक्तों को बाकायदा जमीन पर बैठकर भारतीय प्रसाद ग्रहण करते देखा जा सकता है। वे सभी लंगर की व्यवस्था से अभिभूत हैं। शिविर की रामेश्वरी का कहना है कि वह और उनके साथी भारतीय व्यंजन के मुरीद हैं।

वह इससे पहले भी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के कुंभ में स्वामी जी के साथ भारतीय व्यंजन का लुत्फ ले चुकी हैं।