किसानों को शांत करने के लिए मोदी सरकार जा किया ये, पूरी तरह से…हटाने को…

किसानों का मानना है कि गुरुवार के मार्च से शुक्रवार को होने वाली बैठक से पहले सरकार दबाव बनेगा. मांग पूरी नहीं होने पर ट्रैक्टर मार्च के अलावा कई दूसरे आयोजन की तैयारियां भी की जा रही हैं.

इन घटनाओं के माध्यम से न केवल सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है, बल्कि उन हज़ारों किसानों को प्रोत्साहन देने की कोशिश की जा रही है, जो ठंड का सामना करते हुए छह हफ़्तों से सड़क पर डेरा डाले हुए हैं.

गुरुवार को, किसानों ने दिल्ली के बाहरी इलाक़ों कुंडली-मानेसर-पलवल और कुंडली-ग़ाज़ियाबाद-पलवल बाइपास पर “ट्रैक्टर मार्च” किया. किसान संघ के नेता दर्शन पाल के मुताबिक़, “यह पहले से ही प्रस्तावित योजना के अनुसार हुआ और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आए ट्रैक्टरों ने इसमें भाग लिया.”

हरियाणा के जींद के पास एक हाइवे पर अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली को चला रहीं महिला एकता मोर्चा की डॉ. सीकिम ने कहा कि किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो “दिल्ली में ट्रैक्टर चलाकर, गणतंत्र दिवस में भाग लेकर 26 जनवरी को महिलाएं इस साल इतिहास बनाएंगीं.”

चार जनवरी को हुई पिछली बैठक में गतिरोध नहीं सुलझ पाया था. सरकार ने दोहराया कि वो क़ानूनों के संशोधनों पर विचार के लिए तैयार है, लेकिन किसान इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि क़ानूनों को रद्द करने से कम कुछ भी स्वीकार नहीं होगा.

पंजाब और हरियाणा में महीनों से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ आंदोलन करने के बाद, इन दोनों राज्यों के हज़ारों किसान और कई अन्य लोग पिछले 40 दिनों से बढ़ती सर्दी के बावजूद दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं.

किसान यूनियनों, पुलिस और राज्य के नेताओं के अनुसार आंदोलन के शुरू होने के बाद से अभी तक इसमें भाग ले रहे 50 से अधिक आंदोलनकारी किसानों की मृत्यु हो चुकी है.

केंद्र सरकार के साथ आठवें दौर की बातचीत से एक दिन पहले किसान अपना आंदोलन तेज़ करने की तैयारी करते दिखे. उनकी मांग है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले.

सरकार अब बाबा लखा सिंह को मध्यस्थ बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन किसानों की रणनीति लगातार आंदोलन को धार देने वाली साबित हो रही है. ऐसे में मोदी सरकार नहीं समझ पा रही है कि अब क्या किया जाए. 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड निकालने की तैयारी कर रहे हैं. इसमें महिलाएं भी ट्रैक्टर लेकर चलाएंगी.