सोमवार को मनाए जाने वाली शनि जयंती इस बार विशेष संयोग बना है. 149 वर्ष बाद शनि जयंती, सोमवती अमावस्या व वट सावित्री व्रत की तिथि एक साथ आई हैं.
इससे पहले 30 मई 1870 को यह संयोग बना था
. इस संयोग में सिंह, धनु
व मकर राशियों पर शनि की विशेष कृपा रहेगी
. साथ ही वट सावित्री का व्रत भी रखा जाएगा
.
बह्मपुरी कॉलोनी स्थित सिद्धपीठ श्री बगलामुखी मंदिर के अधिष्ठाता आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ व चंद्रनगर के ज्योतिषाचार्य आचार्य अमित भारद्वाज के मुताबिक इस बार की शनि जयंती लोगों के लिए खास रहेगी.
इसके साथ ही एक में दिन तीन शुभ आयोजन होने के चलते इसका महत्व कई गुणा बढ़ गया है. जिन राशियों में शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही है, उनके लिए यह दिन विशेष रहेगा. शनि जयंती के दिन स्वार्थ सिद्घि योग भी बन रहा है, जिसका असर 24 घंटे तक रहेगा. इस दिन पूजा पाठ करने से विशेष प्रकार का फल मिलेगा.
यह है शनि जयंती का महत्व
आचार्य अमित भारद्वाज ने बताया कि माना जाता है कि इस दिन सूर्य पुत्र शनि का जन्म हुआ था
. सूर्य
व चंद्रमा जब वृषभ राशि में होते हैं तो उस समय शनि जयंती मनाई जाती है
.इस
वर्ष शनि धनु राशि में वक्री होकर गोचर हो रहे हैं
. शनि के साथ केतू के गोचर का भी योग है
.
ऐसे करें शनि देव की पूजा
पंडित रामगोपाल ने बताया कि लोग शनिदेव जयंती पर उपवास भी रखते हैं. खासकर उपवास करने वालों को विधिवपूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजा करने के लिए साफ लकड़ी की चौकी पर काले रंग का कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर शनिदेव की प्रतिमा को स्थापित करें. शनि देव को पंचामृत और इत्र से स्नान करवाने के बाद कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल अर्पित करें.
इसके बाद पूजा करने के दौरान भगवान शनि मंत्र की माला का जाप करना चाहिए. शनि देव कर्मदाता और न्याय प्रिय देव हैं, जिस राशि में भगवान शनि का प्रवेश होता है. उसे धर्म औरअध्यात्म की पालन करते हुए समाज में न्याय करना चाहिए. भगवान शनि देव अच्छे कर्म करने वालों को बेहतर व बुरे कर्म वालों की बुरे परिणाम देते हैं.
ऐसे करें वट सावित्री व्रत पर पूजा अर्चना
आचार्य रोहित वशिष्ठ ने बताया कि वट अमावस्या व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किए जाने वाला व्रत है
. इसे बड़ मावस भी कहते हैं
. इसी अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाती है
. ज्येष्ठ मास की अमावस्या को ही भगवान सूर्य के पुत्र शनि देव का अवतार हुआ था
. सोमवार को होने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते है
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सोमवती अमावस्या होने के कारण इस अमावस्या का महत्व व अधिक बढ़ गया है. प्रातः काल स्नान कर दान करें व अपने पितरों के निमित्त तर्पण करने का विशेष फल है. इसके साथ ही सौभाग्य की वृद्धि चाहने वाले आदमी को अपने हाथ से उचित जगह पर एक बड़ का पेड़ अवश्य लगाए. उस पेड़ की वर्षभर सेवा करनी चाहिए. सनातन धर्म में वृक्ष के पूजन का अधिक फल बोला गया है.
इस दिन सौभाग्यवती महिलाओं को वट के पेड़ की पूजा करनी चाहिए. वट वृक्ष के नजदीक जाकर सर्वप्रथम प्रणाम करें. इसके पश्चात जल चढ़ाएं, अक्षत अर्पण करें, पुष्प अर्पण करें, दीपक जलाएं व सूत का धागा लेकर वृक्ष की 108 परिक्रमा करें. विवाहित महिलाएं घर में सास ससुर को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेने का भी बड़ा पुण्य बोला गया है.