उत्तराखंड में कमजोर पहाड़ों से सड़क बनाने और उन्हें चौड़ा करने का कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण

सड़कें वैसे भी पर्वतीय राज्यों के लिए लाइफ लाइन कही जाती हैं। उत्तराखंड से लेकर जम्मू कश्मीर और लद्दाख तक इसकी तस्दीक भी होती है। मानसून में सड़कों पर कहर बरसता है तो पहाड़ों में जैसे जन जीवन ठहर जाता है। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से लेकर अन्य योजनाओं के जरिए सड़कों को अधिक से अधिक गांवों तक पहुंचाने की कोशिश भी होती आई है।

इतना होने पर भी हिमालय को शायद शिकायत है। यह शिकायत अधिक सड़कें बनाने की कम और बुरे तरीके से सड़क बनाने को लेकर अधिक है। सड़कों के निर्माण के लिए जमकर बारूद का इस्तेमाल होना, मलबे को नदियों में डंप करना, विस्फोटों से पहाड़ों को खोखला कर देना जैसे मामले हैं, जिनसे हिमालय को शिकायत है। हिमालय दिवस पर एक संकल्प इस बात का भी जरूरी है कि हिमालय की गोद में सड़कों का जाल बिछाते हुए हिमालय की संवेदनशीलता का सम्मान किया जाएगा।

मध्य हिमालय में बसी आबादी के लिए सड़कें उनके जीवन की रेखाएं हैं। लेकिन जंगलों, पहाड़ों और नदियों -झरनों के बीच से सड़कों की घुमावदार रेखाएं खींचना मौजूदा इंजीनियरिंग के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसकी सबसे ताजा बानगी चारधाम आलवेदर रोड है, जो सामरिक दृष्टि से भी खासी अहम है। लेकिन इंजीनियरिंग के तमाम संसाधनों और पर्यावरणीय संवेदनशीलता से बचाव के तमाम उपायों के बावजूद ये परियोजना पर्यावरणविदों के लिए चिंता का सबब बनी है।

11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के निर्माण के तरीके को लेकर एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय को एक समिति तक बनानी पड़ी है। ये बताता है कि पर्यावरणीय लिहाज से हिमालय कितना अहम और संवेदनशील है और उसके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए कितना चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। यही वजह है कि आज हिमालय क्षेत्र में ग्रीन रोड बनाने की पैरवी हो रही है। आईआईटी रुड़की में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर रजत रस्तोगी कहते हैं,

पहाड़ और मैदान में सड़क निर्माण एक समान नहीं है। हिमालय के एक बड़े हिस्से खासतौर पर उत्तराखंड में हार्ड राक नहीं है। कमजोर पहाड़ों से सड़क बनाने और उन्हें चौड़ा करने का कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। उन स्थानों पर जहां पहाड़ों से पानी रिसता या बहता है। वहां केच वाटर ड्रेन बनाई जानी चाहिए। ड्रैनेज सिस्टम बहुत मजबूत होना चाहिए। वह कहते हैं कि कटिंग के साथ-साथ ऐसी घास का इस्तेमाल होना चाहिए, जो मिट्टी की पकड़ को मजबूत करने में मदद करे। हाट मिक्स प्लांट के बजाय वार्म मिक्स प्लांट लगाए जाएं। ये उपाय ग्रीन रोड में मदद करेंगे।

हिमालय क्षेत्र में कट एवं फिल के लिए बने बेहतर तकनीक पहाड़ों में सड़क बनाने में खासा नुकसान होता है। इस नुकसान को कम कर सड़क बनाने की क्या कोई तकनीक है?
-पहाड़ में सड़कें यथासंभव कट एवं फिल के आधार पर बननी चाहिए। कटिंग हाइट कम से कम हो। इससे पहाड़ कम अस्थिर होंगे। ज्यमीति नियंत्रण बेहतर होगा। मलबा उत्सर्जन भी कम होगा और भरान में आसानी होगी।

ऐसे मार्गों को नुकसान से कैसे बचाया जा सकता है?
-जहां भी कटिंग की जाती है। टो एवं स्लोप प्रोटेक्शन के साथ-साथ ही नाली का निर्माण भी पूरी लंबाई में होना चाहिए। ब्लास्टिंग कार्य बेहद अपरिहार्य स्थिति में हो। इससे पहाड़ की स्थिरता प्रभावित होती है।

लेकिन इन सबसे सड़क की लागत में इजाफा नहीं होगा?
-स्थानीय अपशिष्ट सामग्री का उपयोग दीवार, सबग्रेड, सब बेस, बेस कोर्स तथा दीवार भरान में किया जा सकता है। इससे कुछ लागत बढ़ेगी, लेकिन लंबे समय में यह ज्यादा उपयोगी और सुरक्षित होगा और बाद में होने वाले खर्च को बचाएगा।
ग्रीन रोड या हाफ कट तरीका क्या है?
-ग्रीन मार्ग आज की आवश्यकता है। इसके लिए लो एनर्जी इनटेंसिव टेक्नोलॉजी को अपनाया जाना चाहिए। कोल्ड मिक्स, वार्म मिक्स, रिसाइक्लड पेवमेंट, बेस्ट प्लास्टिक उपयोग, स्टैबिलाइर्स एवं स्थानीय अपशिष्ट पदार्थ का उपयोग ग्रीन रोड बनाने के विकल्प हैं।
(लोनिवि के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष इंजीनियर एचके उप्रेती से बातचीत )

राज्य कुल सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग
उत्तराखंड 53483 2923 20
हिमाचल 39,356 2607 19
जम्मू कश्मीर 26,711 2,923 12

अनोखे काम, दुनिया में नाम हिमालय की कहीं कठोर चट्टानों को काटकर सुरंगों के जरिये रास्ते बनाने के अनोखे कारनामे हुए हैं। इंजीनियरिंग के कमाल की तस्दीक करती हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में कुछ रेल और सड़क योजनाएं इसकी तस्दीक करती हैं।
1.जम्मू एवं कश्मीर के उधमपुर जिले के चेनानी को रामबन जिले के नशरी से जोड़ने वाली 9.2 किलोमीटर की सुरंग एशिया की सबसे लंबी सुरंगों में से एक है।
2.एशिया की दूसरी सबसे लंबी 11.215 किमी बनिहाल रेलवे सुरंग भी जम्मू कश्मीर में हिमालय की पीर पंजाल रैंज में है।
3. दुनिया की सबसे ऊंचाई पर रोहतांग रोड सुरंग 8.8 किमी बनी है, जो 3,878 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
4. उत्तराखंड में 11700 करोड़ की लागत से चारों धामों को जोड़ने के लिए आलवेदर रोड बनाई जा रही है।
5. उत्तराखंड में ही ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेल मार्ग का निर्माण हो रहा है, जो रेल इंजीनियरिंग के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है।

हिमाचल
2014 से 2019 के बीच औसत वार्षिक बजट 352 करेाड़ रुपये
180 किलोमीटर के लिए सर्वे कार्य पूरा किया गया
10051 करोड़ रुपये की लागत से 254 किलोमीटर की चार नई लाइन परियोजनाओं पर काम जारी
887 किलोमीटर के लिए सर्वे कार्य जारी

जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख
2014 से 2019 के बीच औसत वार्षिक बजट 1821 करेाड़ रुपये
290 किलोमीटर की एक नई लाइन (कटड़ा-बनिहाल सेक्शन पर 111 किलोमीटर), लागत 1956 करोड़ काम जारी
720 किलोमीटर ट्रैक बिछाने के लिए सर्वे जारी
1734 किलोमीटर के लिए पांच सर्वे कार्य पूरे

उत्तराखंड
2014 से 2019 तक औसत वार्षिक बजट 577 करोड़ रुपये
1411 किलोमीटर के छह सर्वे कार्य पूरे
ऋषिकेश कर्णप्रयाग के बीच नई रेल लाइन का निर्माण कार्य जारी
153 किलोमीटर की नई रेल लाइन के लिए 17007 करोड़ रुपये का प्रावधान
347 करोड़ रुपये से लक्सर हरिद्वार रेलवे लाइन के दोहरीकरण का काम जारी
चारधाम सर्किट को हर मौसम में रेल नेटवर्क से जोड़ने का 327 किलोमीटर का अंतिम स्थल सर्वे का काम जारी