ई-कॉमर्स सेक्टर में बेशुमार वृद्धि

भारत में ई-कॉमर्स सेक्टर में बेशुमार वृद्धि देखने में आई है  इसने अपने आकार  आसार में और अधिक बढोतरी होने की प्रचुर क्षमता प्रदर्शित की है. इसलिए, गवर्नमेंट द्वारा इस एरिया में चरणबद्ध

तरीके से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है.

औनलाइन मार्केटप्लेस मॉडल, जिसके लिए एफडीआई की अनुमति दी गई है, बहुत सारे विक्रेताओं के लिए एक समेकित मंच के रूप में कार्य करता है जिससे खासकर, छोटे उद्यमियों को फायदा पहुंचता है जो इस मंच का उपयोग अपनी पहुंच  अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कर सकते हैं.

यह टियर 1 एवं टियर 2 नगरों से आगे बढ़कर दूसरे शहरों के उपभोक्ताओं की भागीदारी भी सक्षम बनाता है जिनकी संभावना का अब तक दोहन नहीं किया गया है. यह उन्हें उत्पाद किस्म, अधिक किफायती मूल्य एवं बेहतर गुणवत्ता के जरिये एक प्रतिस्पर्धी मार्केटप्लेस का फायदा उठाने में भी समर्थ बनाता है.

बहरहाल, ई-कॉमर्स में एफडीआई नीतिगत नियमों में हाल के बदलाव, जैसा कि 26 दिसंबर को जारी प्रेस नोट 2 में निर्धारित किया गया है, विदेशी स्वामित्व के तहत ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के परिचालन में अस्पष्टता की एक परत जोड़ देता है जो न तो ग्राहकों  विक्रेताओं के साथ  न ही विदेशी कंपनियों के साथ न्याय करता है जिन्होंने हिंदुस्तान की विकास गाथा को  आगे बढ़ाने के लिए भारी निवेश किया है.

इसके प्रावधानों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से मार्केटप्लेस परिचालनों एवं व्यावसायिक सौदों को प्रभावित करना है. ऐसा कर , वे ई-कॉमर्स स्पेस के भीतर विनियमनों के इरादे पर शकजताते हैं और ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन‘ के गवर्नमेंट के दावे को निर्बल बनाते हैं.

इससे भी बड़ी बात यह है कि यह कदम व्यवसाय करने की सुगमता मानकों में बेहतरी के हिंदुस्तान द्वारा किए जाने वाले दावे की भी पोल खोल देता है. नीतिगत स्थिरता एक सकारात्मक निवेश माहौल के सृजन की नींव है और उल्लेखनीय निवेश कर दिए जाने के बाद कोई भी गंभीर मेजबान राष्ट्र निवेशकों के लिए व्यवसाय के नियमों में कोई प्रतिकूल बदलाव नहीं करता.