इस व्रत के दौरान ईश्वर शिव की उपासना करना होता है फलदायक

आप सभी जानते ही होंगे कि आज भौम प्रदोष व्रत है  इस व्रत के दौरान ईश्वर शिव की उपासना करना फलदायक होता है इसी के साथ यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ और जरूरी व्रतों में से एक माना जाता है ऐसे में आइए आज जानते हैं भौम प्रदोष व्रत की कथा

कथा – स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती  संध्या को लौटती थी एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ राष्ट्र का राजकुमार धर्मगुप्त था शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया  उसका पालन-पोषण किया कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई

वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे  उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी ऋषि आदेश से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना प्रारम्भ किया एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त “अंशुमती” नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे

गंधर्व कन्या  राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने शादी करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ राष्ट्र का राजकुमार है ईश्वर शिव की आदेश से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का शादी राजकुमार धर्मगुप्त से कराया इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ राष्ट्र पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया यह सब ब्राह्मणी  राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती