इंडोनेशिया व मलयेशिया में पाम ऑयल व चीनी पर चल रही ऐसी राजनीति

चीनी मिलों व किसानों को राहत देने के लिए विदेशों में निर्यात की संभावनाएं तलाश रही केंद्र गवर्नमेंट को उम्मीद की किरण मिली है. इंडोनेशिया व मलयेशिया ने 25 लाख टन चीनी आयात करने में रुचि दिखाई है, लेकिन उनकी शर्त है कि हिंदुस्तान गवर्नमेंट पाम ऑयल पर आयात शुल्क घटा दे. दक्षिण पूर्व एशिया के दोनों राष्ट्र इसके बाद ही चीनी की खरीद करेंगे.गवर्नमेंट के सामने एक तरफ कुंआ व दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है, क्योंकि शुल्क घटाने पर देसी खाद्य ऑयल एरिया को नुकसान होगा.

खास बातें
25 लाख टन चीनी आयात कर सकते हैं मलयेशिया-इंडोनेशिया
शुल्क घटाने से घरेलू खाद्य ऑयल एरिया को होगा नुकसान
54 प्रतिशत किया गया था रिफाइंड किस्म पर आयात शुल्क अप्रैल, 2018 में
चीनी निर्यात की संभावनाओं के लिए चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलयेशिया भेजे गए थे अधिकारी
चीनी निर्यात को लेकर विदेश और वाणिज्य मंत्रालय दोनों राष्ट्रों से वार्ता कर रहे हैं. उम्मीद है कि जल्द हल निकलेगा व किसानों का बढ़ता बकाया चुकाने में मिलों को राहत मिलेगी.वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मलयेशिया व इंडोनेशिया द्वारा पॉम आयल पर शुल्क घटाने की मांग की गई है, जो गवर्नमेंट के लिए सरल नहीं है. अगर गवर्नमेंट ऐसा करती है तो राष्ट्र में खाद्य ऑयल उत्पादन के लिए सोयाबीन, सरसों व सूरजमुखी आदि की पैदावार करने वाले किसानों को नुकसान होगा.
सरकार पहले ही घटा चुकी है शुल्क
गतवर्ष अप्रैल में गवर्नमेंट ने कच्चे पॉम ऑयल (सीपीओ) पर शुल्क को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 44 प्रतिशत किया था, जबकि आरबीडी (रिफाइंड किस्म) के आयात शुल्क को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 54 प्रतिशत किया गया था. इस माह गवर्नमेंट ने रिफाइंड पॉम तेल का आयात मलयेशिया से किए जाने पर शुल्क 54 प्रतिशत से घटाकर 45 प्रतिशत कर दिया था.वहीं इंडोनेशिया समेत आसियान राष्ट्रों से आयात होने पर 50 प्रतिशत का शुल्क तय किया गया है. लेकिन दोनों ही राष्ट्र आयात शुल्क में व कमी लाने की मांग कर रहे हैं, जिस पर चीनी निर्यात की बुनियाद टिकी है.
अच्छी फसल के बावजूद पेराई में हुई देरी
गन्ना किसानों का भारी बकाया गवर्नमेंट के लिए किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. इसकी वजह आने वाले कुछ माह में लोकसभा चुनाव हैं, जिसके मद्देनजर गवर्नमेंट निर्यात के साथ अन्य पहलुओं पर भी कार्य कर रही है. मौजूदा समय चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 19,000 करोड़ रुपये का पहुंच चुका है. गन्ना बकाया में लगभग 5,000 करोड़ रुपये पिछले वर्ष जुड़े हैं, शेष 14,000 करोड़ रुपये का बकाया चालू सीजन के 6 हफ्ते से भी कम समय का है. इस वर्ष भी गन्ने की फसल अच्छी हुई है, जिसके बावजूद चीनी मिलों ने पेराई सत्र (अक्तूबर 2018-सितंबर 2019) के लिए नवंबर, 2018 में अपना परिचालन प्रारम्भ किया है.
शुल्क कटौती हमारे पक्ष में
मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, दोनों राष्ट्रों से विदेश मंत्रालय व उसकी संयुक्त चर्चा चल रही है. हाल ही में उनकी मांग को ध्यान में रखकर की गई शुल्क कटौती हमारे पक्ष में है. गवर्नमेंटको आशा है कि दोनों राष्ट्र जल्द मान जाएंगे व बड़े पैमाने पर चीनी का निर्यात होने से चीनी मिलों समेत किसानों को बड़ी राहत मिलेगी. बताते चलें कि गवर्नमेंट ने हाल ही में चीनी निर्यात की संभावनाएं तलाशने के लिए अधिकारियों की कई टीमों को चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया व मलयेशिया भेजा था. दक्षिण एशियाई दोनों राष्ट्रों के इतर भी पड़ोसी राष्ट्रों से वार्ता जारी है. उल्लेखनीय है कि चाइना को पहले भी हिंदुस्तान चीनी निर्यात कर चुका है.