सुप्रीम न्यायालय के निदेशक आलोक कुमार वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने के केन्द्र के निर्णय के विरूद्ध उनकी याचिका पर आज (मंगलवार 8 जनवरी) निर्णय सुनायेगा। जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा व ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद गवर्नमेंट ने दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का फैसला किया था। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर करप्शन के आरोप लगाये थे। वर्मा ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के एक व कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के दो सहित 23 अक्टूबर 2018 के कुल तीन आदेशों को निरस्त करने की मांग की है। उनका आरोप है कि ये आदेश क्षेत्राधिकार के बिना तथा संविधान के अनुच्छेदों 14, 19 व 21 का उल्लंघन करके जारी किये गये।
केन्द्र ने इसके साथ ही 1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस ऑफिसर एवं ब्यूरो के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को जांच एजेन्सी के निदेशक का अस्थाई कार्यभार सौंप दिया था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने पिछले वर्ष छह दिसंबर को आलोक वर्मा की याचिका पर वर्मा, केन्द्र, केन्द्रीय सतर्कता आयोग व अन्य की दलीलों पर सुनवाई पूरी करते हुये फैसला सुरक्षित रखा था।
पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की याचिका पर भी सुनवाई की थी। इस संगठन ने कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल से राकेश अस्थाना सहित जांच ब्यूरो के तमाम अधिकारियों पर लगे करप्शन के आरोपों की जांच कराने का अनुरोध किया था।
वर्मा का CBI निदेशक के रूप में दो वर्ष का कार्यकाल 31 जनवरी को पूरा हो रहा है। उन्होंने केन्द्र के निर्णय को चुनौती देने हुए शीर्ष न्यायालय का रुख किया था।
केन्द्र ने शीर्ष न्यायालय के सामने वर्मा को उनकी जिम्मेदारियों से हटाकर अवकाश पर भेजने के अपने निर्णय को सही ठहराया था व बोला था कि उनके व अस्थाना के बीच विवाद की स्थिति है जिस वजह से राष्ट्र की शीर्ष जांच एजेंसी ‘‘जनता की नजरों में हंसी’’ का पात्र बन रही है।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से बोला था केन्द्र के पास ‘‘हस्तक्षेप करने’’ तथा दोनों अधिकारियों से शक्तियां लेकर उन्हें छुट्टी पर भेजने का अधिकार है।