आरबीआई-सरकार के बीच अहम बैठक

भारत सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच विवाद के सार्वजनिक होने के बाद से पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी और बोर्ड के (सरकार द्वारा) नियुक्त सदस्य आमने-सामने हैं.

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सोमवार (19 नवंबर) को शुरू हुई आरबीआई बोर्ड की बैठक पर हो रही चर्चा इससे पहले के केंद्रीय बैंक की बैठक को लेकर कभी नहीं सुनी गई.

दोनों के बीच आपसी दरार की शुरुआत तब हुई जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने यह चेतावनी दी कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को कमज़ोर करना विनाशकारी हो सकता है.

इस बैठक में दो विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा किए जाने की संभावना है.

बैंक के कर्ज़ देने के नियम

गर्वनर उर्जित पटेल के नेतृत्व में भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय बैंकों की बैलेंस शीट की साफ़ सफ़ाई के लिए सख्त कदम उठाए हैं ताकि साफ़ बैलेंस शीट के साथ बैंकों को फिर से सही राह पर वापस लाया जा सके. सरकारी बैंकों पर अनुत्पादक कर्ज़ बहुत ज़्यादा हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय बैंकों का अनुत्पादक ऋण जून 2018 तक 9.5 लाख करोड़ के साथ अपने रिकॉर्ड स्तर पर था.

केंद्रीय बैंक इस बात से चिंतित है कि यदि एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (गैर निष्पादनीय परिसंपत्तियां) को कम नहीं किया जाता है तो इससे दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर जोखिम बढ़ सकता है. लेकिन प्रतिबंधों की वजह से कई बैंक आज कर्ज़ देने की स्थिति में नहीं हैं.

गौरतलब है कि जब कोई देनदार, बैंक से लिए कर्ज़ को देने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) कहलाता है.

2014 में, आरबीआई ने बैड लोन की परेशानी से ग्रस्त 11 राष्ट्रीयकृत बैंकों में तथाकथित सुधार कार्य योजना की शुरुआत की. उस योजना में जोखिम से भरे कर्ज़ देने पर प्रतिबंध शामिल था और रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी वजह से बैंकों का लोन ग्रोथ गिरकर शून्य पर जा पहुंचा. सरकार उन प्रतिबंधों में ढील देना चाहती है.

इसके अलावा, लिक्विडिटी (तरलता) की कमी भी कारोबार पर प्रतिकूल असर डाल रही है- खास कर मझोली और छोटी कंपनियों पर जिन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम (एमएसएमई) के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है.

अरुण जेटली के नेतृत्व वाला वित्त मंत्रालय चाहता है कि आरबीआई इन प्रतिबंधों में ढील दे, लेकिन केंद्रीय बैंक ने वर्तमान स्थिति से पीछे हटने से इंकार कर दिया है.

चुनाव पूर्व आर्थिक वृद्धि

कर्ज़ दिए जाने के लिए निर्धारित मानदंडों ने पूंजी प्रवाह को सीमित कर दिया है जिसकी वजह से वास्तव में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं.

अगले साल चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में सरकार अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाए रखना चाहती है, खासकर एमएसएमई सेक्टर नई नौकरियों के सृजन में अहम भूमिका निभाती हैं और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए ये एक महत्वपूर्ण चुनावी घटक है.

जीएसटी और नोटबंदी की वजह से कई एमएसएमई कंपनियां दबाव का सामना कर रही हैं.

हालांकि, सरकार आरबीआई के साथ बड़ी लड़ाई का जोखिम नहीं ले सकती जिसकी वजह से न केवल निवेशकों के सेंटीमेंट पर बुरा असर पड़ सकता है बल्कि विपक्ष को भी इससे राजनीतिक चारा मिल जाएगा.

लेकिन कई विश्लेषक मानते हैं कि लिक्विडिटी (तरलता) संकट पर पर बीच का रास्ता निकाला जाना संभव है, लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि रिजर्व बैंक किस हद तक अपने तय मानदंडों में छूट देने का इच्छुक है.

रिजर्व बैंक कैश रिजर्व

इस संबंध में दूसरा बड़ा मुद्दा है कि आरबीआई कितना कैश रिजर्व रख सकती है. हालांकि सरकार ने उन रिपोर्ट्स का खंडन किया है कि उसने आरबीआई के कैश रिजर्व से 3.6 लाख करोड़ रुपये निकाल कर अर्थव्यवस्था में शामिल करने की कोई मांग की थी. इस बैठक में इस पर भी चर्चा हो सकती है कि आरबीआई के पास कितनी सुरक्षित निधि रहनी चाहिए.

आर्थिक आपातकाल की स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक के पास कितना पैसा सुरक्षित भंडार के रूप में होना चाहिए यह बहस का बहुत ही मुश्किल विषय है.

यह तय करने के लिए कि केंद्रीय बैंक की पूंजी आवश्यकता पर फ़ैसले के लिए सरकार एक तंत्र का निर्माण करना चाहती है, जो उसे (सरकार को) मिल रहे लाभांश पर एक स्पष्टता देगी. केंद्रीय बैंक अपने रिजर्व के आधार पर हर साल एक लाभांश का भुगतान करता है.

रिजर्व बैंक के डेटा के मुताबिक, सेंट्रल बैंक के पास कुल 9.59 लाख करोड़ रुपये हैं, जो वित्त वर्ष 2016-17 में 8.38 लाख करोड़ रुपये की तुलना में अधिक हैं. इन्हें आकस्मिक निधि, मुद्रा और स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन खाते और संपत्ति विकास निधि समेत कई प्रमुख हिस्सों के तहत विभाजित कर के रखा जाता है.

आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल

उर्जित पटेल के इस्तीफ़े की संभावना!

पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान ऐसी भी कई न्यूज़ रिपोर्ट्स आईं कि यदि सरकार बोर्ड के सदस्यों के माध्यम से अपनी मांगों को लागू करने की कोशिश करती है या आरबीआई अधिनियम की धारा 7 को लागू करती है तो, रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफ़ा दे सकते हैं.

लेकिन अधिकांश जानकारों के मुताबिक, इसकी संभावना न के बराबर है क्योंकि संकेत मिले हैं कि पिछले कुछ दिनों की गरमाहट के बावजूद इस अहम बैठक के दौरान दोनों ही पक्ष मतभेदों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.

रिजर्व बैंक मुख्यालय में सोमवार को हो रही इस बैठक में बोर्ड के सभी 18 सदस्यों के भाग लेने की उम्मीद है.

वर्तमान बोर्ड में रिजर्व बैंक के पांच अधिकारी शामिल हैं जिनमें गवर्नर उर्जित पटेल और चार डिप्टी गवर्नर शामिल हैं. आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्त सेवा सचिव राजीव कुमार बोर्ड में सरकार की तरफ़ से मनोनीत हैं.

बाकी सभी 11 सदस्य सरकार की तरफ से नियुक्त किए जाते हैं. इनमें एस. गुरुमूर्ति के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ घनिष्ठ संबंध है और वो आरबीआई के कठोर आलोचक रहे हैं.