आदिवासियों के लिए आ गया सुप्रीम कोर्ट का ये बेहद खास निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने देश के करीब 16 राज्यों के 10 लाख से अधिक आदिवासी परिवारों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को गुरुवार को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने वनवासियों और आदिवासियों को बेदखल करने के वाले अपने 13 फरवरी के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने ये आदेश केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकारों को वनवासियों के दावों को खारिज करने में अपनायी गयी प्रक्रियाओं के बारे में ब्यौरा देने के लिए हलफनामे दायर करने का निर्देश दिया। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय की याचिका के बाद 10 जनवरी के आदेश को रद्द कर दिया। जिसमें 16 राज्यों में रहने वाले वन-निवास अनुसूचित जनजाति (एफडीआई) और अन्य पारंपरिक वन(ओटीएफडी) के हित में न्यायिक आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी। बुधवार को सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने जनजातीय कार्य मंत्रालय का आवेदन जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ के समक्ष रखा था।

उन्होंने शीर्ष अदालत से कहा कि था कि, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम के तहत जंगलों पर किए गए दावों को खारिज किए जाने संबंधी आदेशों को अंतिम नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने कहा कि इस आदेश से प्रभावित होने वाले ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं और अपने वन अधिकारों की उन्हें जानकारी नहीं है। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा, हम अपने 13 फरवरी के आदेश पर रोक लगा रहे हैं। पीठ ने कहा कि वनवासियों को बेदखल करने के लिये उठाये गये तमाम कदमों के विवरण के साथ राज्यों के मुख्य सचिवों को हलफनामे दाखिल करने होंगे।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में राज्यों द्वारा दायर हलफनामों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए गए लगभग 11,72,931 (1.17 मिलियन) भूमि स्वामित्व के दावों को विभिन्न आधारों पर खारिज कर दिया गया है। इनमें वो लोग शामिल हैं जो ये सबूत नहीं दे पाए कि कम से कम तीन पीढ़ियों से भूमि उनके कब्जे में थी।