विश्व हिंदू परिषद द्वारा राम मंदिर को लेकर शुक्रवार (05 अक्टूबर) को राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में संतों की उच्चाधिकार समिति की मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें दो दर्जन से अधिक प्रमुख संत भाग लेंगे। विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष अलोक कुमार ने बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि राम मंदिर का निर्माण होगा। राम मंदिर बनेगा। अब इसका रास्ता क्या होगा, इस पर पांच अक्टूबर को संतों की उच्चाधिकार समिति विचार करेगी। उन्होंने बोला कि न्यायालय इस मामले में सुनवाई करके निर्णय सुनाएगी, कानून के माध्यम से इस पर आगे बढ़ा जा सकता है। इन मुद्दों पर संतों की समिति विचार करेगी।
अलोक कुमार ने बोला कि इस मीटिंग में संतों के समक्ष सभी विषयों पर चर्चा की होगी। हम संतों से आगे का मार्ग पूछेंगे व जैसा वे बतायेंगे, वैसा करने के लिये हम प्रतिबद्ध हैं। विहिप कार्याध्यक्ष ने बोला कि संसद में कानून बनाकर भी आगे बढ़ा जा सकता है व इस बारे में गवर्नमेंट को तय करना है। उन्होंने बोला कि ‘कानूनी बाधाएं दूर करके राम मंदिर के निर्माण का रास्ता प्रशस्त हो, ऐसा संतों से मार्गदर्शन लेकर कार्य करेंगे। यह मीटिंग श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास की अध्यक्षता में होगी।
आपको बता दें कि पिछले महीने यानि सिंतबर 22 सितंबर को विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर के मुद्दे पर संतों की उच्चाधिकार समिति की मीटिंग दिल्ली में बुलाई थी। जानकारी के मुताबिक, देशभर के 30 से 35 बड़े संत लेंगे मीटिंग में भाग लेंगे संतो की इस मीटिंग के लिए विश्व हिंदू परिषद ने सभी संतों को लेटर जारी किया था व राम मंदिर निर्माण के लिए फैसलालेने के लिए मीटिंग का न्योता भेजा था। एक प्रोग्राम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी राम मंदिर को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने बोला था कि इस विषय पर अध्यादेश लाए जाने पर विचार किया जाना चाहिए। मोहन भागवत ने बोला था कि राम जन्मभूमि पर राम मंदिर जल्दी बनना चाहिए।
क्या है राम मंदिर विवाद?
वर्ष 1989 में राम जन्म भूमि व बाबरी मस्जिद जमीन टकराव का ये मामला इलाहाबाद न्यायालय पहुंचा था। 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान वजस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या टकराव पर अपना निर्णय सुनाया। निर्णय हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्से किए जाएं। राम मूर्ति वाला पहला भागरामलला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा व सीता रसोई वाला दूसरा भाग निर्मोही अखाड़ा को दिया गया व बाकी बचा हुआ तीसरा भाग सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।इलाहाबाद न्यायालय के इस निर्णय को हिन्दू महासभा व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम न्यायालय में चुनौती दे दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम न्यायालय ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से मामला सुप्रीम न्यायालय में लंबित है।