सुप्रीम न्यायालयने एक दंपति को तलाक के लिए छह महीने की जरूरी अवधि (कूलिंग ऑफ पीरियड) में छूट देते हुए अलग होने को अनुमति दी। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने बोला कि वे इस बात से संतुष्ट हैं कि दंपति ने ‘‘दोस्तों के रूप में अलग होने का सोचा समझा फैसला’’ किया है व अपने शादी संबंध समाप्त किये हैं।
न्यायालय ने कहा, ‘‘पति व पत्नी दोनों हमारे सामने उपस्थित हैं, जो सुशिक्षित हैं। हमने उनसे लंबी बात की है। हम इस बात पर राजी हैं कि उन्होंने दोस्त के रूप में अलग होने के लिए सोचा समझा निर्णय किया है। पक्षों के बीच मुकदमे की पृष्ठभूमि देखते हुए, हम इस बात पर सहमत हैं कि पक्षों को छह व महीने का इंतजार कराने की कोई तुक नहीं है। ’’ कोर्ट ने बोलाकि स्थानान्तरण याचिका के लंबित रहने के दौरान, दंपति ने आपसी सहमति से समझौता कर लिया।
दंपति की 2016 में दिल्ली में विवाह हुई थी व वे एक महीने तक एक साथ रहे थे। टकराव होने पर वे अलग हो गये व पति ने तलाक की अर्जी दायर कर दी। महिला ने दिसंबर 2017 में गुजरात के आणंद में पति के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई थी। न्यायालय ने आपसी समझौते की शर्तों पर गौर किया व बोला कि आपसी रजामंदी से तलाक का आदेश जारी किया जाता है।