
कांग्रेस पार्टी के लिए पहली बड़ी कठिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने खड़ी कर दी है. मायावती ने राज्य में अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर कांग्रेस पार्टी को हक्काबक्का कर दिया.मायावती ने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को निशाने पर लेते हुए बोला कि कांग्रेस-बसपा के बीच साझेदारी नहीं होने के लिए वही जिम्मेदार हैं. मायावती के इस दांव से फिल्हाल कांग्रेस पार्टी चित नजर आ रही है.
राज्य में चुनाव के लिए कुछ ही वक्त बचा है. कांग्रेस-भाजपा की ओर से ताबड़तोड़ रैलियों व जनसभाओं का दौर जारी है. कांग्रेस पार्टी की ओर से खुद राहुल गांधी ने कमान थाम ली है वउनकी रैलियों का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है. बीजेपी पर राहुल व कांग्रेस पार्टी के तीखे हमले हो रहे हैं व मुख्यमंत्री शिवराज बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं. मायावती के दांव ने जबरदस्त ट्विस्ट पैदा कर दिया है जिससे मुकाबला व उलझ गया है.
भाजपा पर कई मुद्दे पड़ रहे भारी
फिल्हाल बीजेपी प्रतिकूल दशा का सामना कर रही है. कई मुद्दे उस पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा है एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा. इसे लेकर बीजेपी के कोर वोटर में ही उसके प्रति नाराजगी देखी जा रही है. जगह-जगह धरना प्रदर्शन हो रहे हैं व मुख्यमंत्री शिवराज को आलोचना झेलनी पड़ रही है. इसके अतिरिक्त किसानों की नाराजगी व एंटी इंकंबेंसी फैक्टर भी बीजेपी की राह कठिन करता नजर आ रहा है. सपाक्स का चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय भी बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होने जा रहा है. पूर्व आईएएस अधिकारियों का ये संगठन बीजेपी गवर्नमेंट से बेहद नाराज है व कई पूर्व ऑफिसर चुनावी मैदान में ताल ठोकने जा रहे हैं.
भाजपा के लिए राहत की खबर
हालांकि मायावती का रुख बीजेपी के लिए राहत भरी समाचार है. राज्य में बीएसपी का असर कई इलाकों में है. पिछले कुछ चुनावों में इस पार्टी ने 6 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए हैं जो इसे राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी बनाता है. कुछ समय पहले तक कांग्रेस पार्टी व बीएसपी के बीच गठजोड़ के कयास लग रहे थे लेकिन मायावती ने ऐन वक्त पर कांग्रेस पार्टी को झटका देकर उसकी रणनीति को बिगाड़ दिया है.
लेकिन क्या इससे बीजेपी को इतना लाभ होगा कि वह लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी कर सके. इसके लिए हमें राज्य में वोटों का समीकरण समझना होगा. मध्य प्रदेश में दलित कुल आबादी का करीब 15 प्रतिशत है. दलितों की संख्या यहां 7 करोड़ 50 लाख है. दलितों के वोट का बड़ा भाग बीएसपी के खाते में जाता है व इसी वजह से मायावती यहां तीसरी ताकत बनी हुई हैं. अगर यहां एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा प्रभाव दिखाता है तो जितना नुकसान बीजेपी को होगा उतना ही लाभ बीएसपी व कांग्रेस पार्टी को होगा. लेकिन अगर ऐन वक्त पर बीजेपी से नाराज वोटर उसके ही पक्ष में वोट करता है तो उसकी वापसी तय है.