पति ने नहीं पूरी की इच्छा, तो पत्नी मोहल्ले के लड़कों से बुझाने लगी हवस

सन 2011 में निर्मला जब 30 वर्षीय संजय रजक की पत्नी बन कर घर आई थी तो वह खुशी से फूला नहीं समाया था। क्योंकि उस की पत्नी बला की खूबसूरत थी। पेशे से मजदूर संजय के सपने बड़े नहीं थे। वह तो बस एक सुकूनभरी जिंदगी जीना चाहता था, जिस में पत्नी हो, बच्चे हों और छोटे से घर में हमेशा खुशियां बनी रहें।

संजय भले ही कम पढ़ालिखा था लेकिन था मेहनती। ज्यादा पैसे कमाने के लिए उस ने एक औफिस और एक स्कूल में माली का काम भी ले लिया था। आम नौजवानों की तरह सुहागरात को ले कर संजय के मन में भी रोमांच और बहुत उत्सुकताओं के साथ थोड़ी सी घबराहट भी थी। पहली रात को यादगार बनाने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पहले कमरा सजाया फिर इत्र से महकाया और पत्नी निर्मला के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक तोहफा भी लिया।

दोस्तों के मुंह से उस ने सुन रखा था कि सुहागरात के दिन जिस पति ने पत्नी को जीत लिया, वह जिंदगी भर उस की मुरीद रहती है। इस जीत लिया का मतलब संजय खूब समझता था कि सिर्फ शारीरिक तौर पर ही पत्नी को हासिल या संतुष्ट कर देना नहीं होता, बल्कि आने वाली जिंदगी को ले कर बहुत से सपने भी साथ बुनने पड़ते हैं और पत्नी की इच्छाएं भी समझनी पड़ती हैं। उस ने अब तक फिल्मों में सुहागरात देखी थी और कुछ शादीशुदा दोस्तों से उन के तजुरबे जाने थे।

इस रात को हसीन बनाने के मकसद से जब वह कमरे में पलंग पर बैठी निर्मला के पास पहुंचा तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया। लाल सुर्ख जोड़े में निर्मला वाकई गजब ढा रही थी। अपनी किस्मत पर उसे गर्व हो रहा था। सुहागरात में वो अपनी पत्नी को उनके मनमुताबिक प्यार नहीं दे पाया। फिर हर दिन यही होने लगा। जब जब संजय घर पर रहता पत्नी दिन में 11-12 बार संबंध बनाने को कहती।

कुछ दिनों बाद ही जब निर्मला दिन में भी और सुबहसुबह भी सैक्स चाहने लगी तो संजय को अजीब लगा। अजीब इसलिए कि वह चाहे कितना भी सैक्स कर लेता, लेकिन निर्मला का जी नहीं भरता था। शादी के बाद आमतौर पर पति नईनवेली पत्नी के आगेपीछे मंडराते हैं और मनचाहे सैक्स के बाबत पत्नियों के नाजनखरे उठाते हैं। लेकिन यहां तसवीर उलट थी। संजय को पत्नी से कुछ कहना ही नहीं पड़ता था बल्कि जो लगातार करना पड़ रहा था, उस से उसे खीझ होने लगी थी।

खीझती तो निर्मला भी थी पर उस वक्त जब संजय उस की इच्छा या मांग पूरी करने में आनाकानी करता था या फिर बहाना बनाने की कोशिश करता था। ऐसी स्थिति में वह कभीकभार पति को ताने भी मारने लगी थी। संजय को सैक्स से कोई परहेज नहीं था लेकिन वक्तबेवक्त पत्नी की सैक्स इच्छा उस की समझ के बाहर थी। फिर भी जितना उस से बन पड़ता था, वह पत्नी को खुश रखने की कोशिश करता था। उस का सोचना था कि वक्त रहते सब ठीक हो जाएगा।

पर उस का यह खयाल गलत साबित हुआ। शादी के बाद जब निर्मला गर्भवती हुई तो संजय को दोहरी खुशी हुई। पहली खुशी उस ने दोस्तों और रिश्तेदारों से साझा भी की कि वह भी बाप बनने वाला है लेकिन दूसरी उस ने अपने मन में ही रखी कि अब एकाध साल निर्मला मनमानी नहीं कर पाएगी। क्योंकि लेडी डाक्टर ने चैकअप के वक्त सैक्स को ले कर कुछ हिदायतें दी थीं, जिन में यह बात भी शामिल थी कि कोई बंदिश तो नहीं पर इस दौरान सैक्स से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। डाक्टर के समझाने का निर्मला पर कोई असर नहीं पड़ा था। मन मार कर और ऐहतियात बरतते हुए संजय को निर्मला की इच्छा पूरी करनी पड़ती थी। अब वह यह उम्मीद लगाने लगा था कि शायद बच्चा हो जाने के बाद निर्मला में कुछ सुधार आ जाए। वक्त रहते निर्मला ने सुंदर बेटे को जन्म दिया तो अपनी इस नई जिम्मेदारी के प्रति संजय गंभीर हो चला था कि अब खर्चे बढ़ेंगे, कल को बेटा स्कूल भी जाएगा इसलिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और बचाने की कोशिश की जाए। उस ने बेटे का नाम समीर रखा।

मां बनने के बाद भी निर्मला में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उस की फरमाइश पहले से और ज्यादा बढ़ गई थी। इधर संजय में पहले सी ताकत और जोश नहीं रहा था, इसलिए वह कभीकभार साफ मना कर देता था। इस पर निर्मला उसे मारनेनोचने लगती थी और पागलों जैसी हरकतें करने लगती थी। संजय को इतना तो समझ आ रहा था कि निर्मला को इतनी तीव्र इच्छा कोई स्वाभाविक बात नहीं बल्कि एक असामान्यता या कोई बीमारी है पर महमंद जैसे छोटे से गांव में जहां कोई फिजिशियन भी नहीं था, वहां किसी मनोचिकित्सक के होने की कोई संभावना तक नहीं थी, जिस से संजय पत्नी की इस अजीब सी बीमारी का इलाज करा पाता।

पति काफी कुछ बरदाश्त कर लेता है पर पत्नी शादी के 4 साल बाद उस की मर्दानगी को ले कर ताने मारे तो उस का सब्र जवाब दे जाता है। यही संजय के साथ हो रहा था जो बेटे समीर का मुंह देख कर बेइज्जती के कड़वे घूंट पी जाता था। अब उस की हर मुमकिन कोशिश निर्मला से दूर रहने की होती थी, पर यह नामुमकिन काम था। एक दिन निर्मला ने फिर से जिद की तो उस ने मन मार कर साफ कह दिया कि उस में अब इतनी ताकत नहीं है कि दिनरात यही सब करता रहे। इस बार निर्मला ने उस से नोचने या कोई पागलपन जाहिर करने के बजाय उसे सैक्स पावर बढ़ाने की दवाएं लेने की सलाह दी तो वह चौंक उठा।

निर्मला की सलाह पर वह कोई प्रतिक्रिया दे पाता, इस के पहले ही उस ने पागलों जैसी जिद पकड़ ली कि मर्दानगी और ताकत बढ़ाने वाली दवा खाओ, इस में हर्ज क्या है। हर बार की तरह इस बार भी संजय को पत्नी की जिद के आगे हथियार डालने पड़े और वह झेंपता, सकुचाता शहर से सैक्स पावर बढ़ाने वाली दवा ला कर खाने लगा। इस उपाय से कुछ दिन ही ठीकठाक गुजरे यानी निर्मला संतुष्ट रही, लेकिन कुछ दिन बाद फिर ढीले पड़ते संजय के साथ वह पहले की तरह व्यवहार करने लगी। जिस से संजय को घर नर्क और जिंदगी बेकार लगने लगी थी। अपनी अजीबोगरीब परेशानी वह किसी से साझा भी नहीं कर सकता था। क्योंकि बात शर्म वाली होने के साथसाथ इज्जत का कचरा कराने वाली भी थी।

सैक्स के साथसाथ अब जिंदगी की गाड़ी भी हिचकोले खाते चलने लगी थी। निर्मला अपनी बीमारी के हाथों मजबूर थी, इसलिए उस ने मोहल्ले के कम उम्र के लड़कों से दोस्ती गांठनी शुरू कर दी थी। वह उन से शारीरिक संबंध बनाने लगी थी। यह भनक जब संजय को लगी तो वह तिलमिला उठा, लेकिन खामोश रहा। क्योंकि बिना सबूत पत्नी पर इलजाम लगाना कोई तुक वाली बात नहीं थी। एक दिन निर्मला ने बड़े प्यार से संजय से कहा कि वह उस की भी नौकरी कहीं लगवा दे, जिस से घर की आमदनी बढ़े। इस पेशकश को संजय ने यह सोचते हुए मान लिया कि निर्मला काम करेगी तो व्यस्त रहेगी। इस से संभव है उस की आदतों में सुधर आए। यह सोचते हुए उस ने निर्मला की नौकरी उसी स्कूल में लगवा दी, जहां वह माली का काम करता था।

स्कूल में काम करने की निर्मला की असली मंशा भी जल्द उजागर हो गई। उस ने वहां के नौजवान चपरासियों से ले कर बस कंडक्टर और ड्राइवरों तक से शारीरिक संबंध बना लिए। ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं। इस से संजय की ही बदनामी हो रही थी, पर वह बेबस था। एक दिन तो उस वक्त हद हो गई जब उस ने अपने ही घर में निर्मला को एक लड़के के साथ रंगरेलियां मनाते हुए देख लिया। इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और निर्मला ने उलटे थाने में जा कर पति के खिलाफ मारपीट करने की शिकायत लिख कर दे दी। इस पर पुलिस वालों ने दोनों को समझाबुझा कर वापस भेज दिया। गुस्साई निर्मला मायके चली गई। डेढ़ साल मायके में रह कर वह वापस आई तो बिलकुल नहीं बदली थी। संजय शायद उसे वापस नहीं लाता, पर बेटे के मोह ने उसे जकड़ रखा था। वापस आ कर निर्मला फिर से किसी न किसी को घर बुला कर सैक्स की भूख शांत करने लगी।

टोकने पर अब वह पूरी बेशरमी से संजय से कहने लगी थी कि जब तुम मेरी भूख नहीं मिटा सकते तो मेरे लिए लड़कों का इंतजाम करो और नहीं कर सकते तो आंखकान बंद किए रहो। 16 फरवरी, 2018 की शाम जब संजय सब्जी ले कर घर वापस आया तो यह देख शर्म से पानीपानी हो उठा कि निर्मला एक कम उम्र बच्चे के साथ सैक्स कर रही थी। गुस्साए संजय ने उसे डांटा तो वह पूरी बेशरमी से बोली कि जब तुम से कुछ नहीं होता तो चुप रहो, मेरा जब जहां जिस से मन करेगा, करूंगी। इस जवाब पर संजय की हालत सहज समझी जा सकती थी, जो रोजरोज पत्नी की बेजा हरकतों के चलते तिलतिल कर मर रहा था और अब तो बदनामी भी होने लगी थी। किसी भी पति के लिए यह डूब मरने वाली बात थी।

इसी रात संजय जब सोने के लिए बिस्तर पर गया तो निर्मला उस के पास आ कर उसे सैक्स के लिए उकसाने लगी। मना करने का नतीजा और निर्मला के जहर बुझे जवाब संजय को मालूम थे, इसलिए उस ने यह सोचते हुए पूरी तरह आपा खो दिया कि इस मर्दखोर औरत की वासना तो कभी शांत होने वाली नहीं है। लिहाजा क्यों न इसे ही हमेशा के लिए शांत कर दिया जाए।

संजय ने कमरे में पड़ा लोहे का डंबल उठा कर निर्मला के सिर पर दे मारा। 2-3 प्रहार में ही उस की मौ’त हो गई। पत्नी की लाश के पास बैठ कर उस ने न जाने क्याक्या सोचा और फिर घबरा गया। फांसी का फंदा संजय को अपनी गरदन पर लटकता हुआ दिख रहा था। कुछ देर और सोचने के बाद उस ने भाग जाने का फैसला ले लिया और रसोई में जा कर निर्मला की कब्र खोदनी शुरू कर दी। एक घंटे में 2 फीट गहरा गड्ढा खुद गया तो उस ने लाश उस में डाल कर ऊपर से ईंटें बिछा दीं। घर के बाहर सूरज की रोशनी देख संजय को तब एक झटका और लगा जब उस ने गहरी नींद में सोए बेटे को देखा। अब उस का क्या होगा, इस खयाल से ही उस का दिल दहल गया कि इस मासूम का क्या कुसूर जो वह मांबाप के किए की सजा भुगते।

यह सोचते ही उस ने थाने जा कर आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और वह बेटे को गोद में उठा कर नजदीकी तोरबा थाने की तरफ चल पड़ा। अब तक निर्मला की हत्या की खबर गांव वालों को भी लग चुकी थी, इसलिए कई लोग उस के पीछेपीछे थाने की तरफ चल दिए। हालांकि उस के किए की खबर पहले से ही थाने पहुंच चुकी थी। हुआ यूं था कि स्कूल के एक शिक्षक आकाश उपाध्याय ने संजय को फोन कर के निर्मला को काम पर जल्द भेजने के लिए कहा था।

संजय ने बेहद सर्द आवाज में आकाश उपाध्याय को बता दिया था कि उस ने निर्मला की ह’त्या कर दी है और वह आत्मसमर्पण करने थाने जा रहा है। इस पर आकश ने थानाप्रभारी परिवेश तिवारी को यह खबर दे दी थी। पुलिस टीम अभी संजय को गिरफ्तार करने जा ही रही थी कि संजय थाने जा पहुंचा। बेटा समीर उस की गोद में था। पुलिस पूछताछ में संजय की कहानी सामने आई तो उसे बहुत ज्यादा गलत न मानने वालों की भी कमी नहीं थी, पर गुनाह तो उस ने किया था, जिस की सजा मिलना भी तय था। पुलिस टीम के साथ घर आ कर उस ने निर्मला की लाश और हत्या में प्रयुक्त डंबल बरामद करवा दिया और फिर खामोशी से हवालात में समीर को अपने सीने से चिपका कर बैठ गया। जिस ने भी सुना, वह अवाक रह गया कि ऐसा भी होता है।

जब निर्मला के मांबाप समीर को ले जाने के लिए आए तो उस ने साफ इनकार कर दिया। उस का कहना था कि निर्मला के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इस के बाद भी वे बेटी की तरफदारी करते थे। लिहाजा अदालत के आदेश पर पुलिस ने समीर को बालगृह भेज दिया। संजय और क्या करता इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं था। वह पत्नी को छोड़ता तो भी बदनामी होती और निर्मला अपनी बीमारी छिपाए रखने के लिए झूठी रिपोर्ट पुलिस में लिखाती रहती।

तलाक के लिए अदालत जाता तो भी परेशान रहता, क्योंकि इस बीमारी को अदालत में साबित कर पाना आसान काम नहीं था। वजह जिन के साथ निर्मला ने संबंध बनाए थे, वे तो गवाही देने अदालत आते नहीं। दूसरे हर हालत में उसे पत्नी को गुजारा भत्ता तो देना ही पड़ता। वह जहां भी रहती, वहीं किसी न किसी मर्द से संबंध बनाने से नहीं चूकती। ऐसे परेशान पतियों की मदद कोई नहीं करता। हालांकि खुद संजय ने भी इस मुसीबत से छुटकारा पाने की कोई खास कोशिश नहीं की और इसी बेबसी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपनी कामुक पत्नी की हत्या कर दे।

थाने में पुलिस वालों की बातचीत से उसे पता चला कि निर्मला वाकई एक ऐसी बीमारी निंफोमेनिया की मरीज थी, जिस में औरत को सैक्स संतुष्टि नहीं मिलती। यह बीमारी एक लाख महिलाओं में से किसी एक को होती है, जिस का इलाज मुमकिन है बशर्ते कोई विशेषज्ञ डाक्टर की देखरेख में हो। जाहिर है, यह संजय के वश की बात नहीं थी और जो थी उसे उस ने अंजाम दे डाला। इस बाबत कोई शर्मिंदगी या पछतावा भी उसे नहीं था। उस की एकलौती चिंता समीर और उस का भविष्य है।