छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से बीजेपी सत्ता

छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से बीजेपी सत्ता में हैं इसका बड़ा कारण है वहां पार्टी का संगठन और पार्टी में एक जुटता। रमन सिंह की पार्टी पर पूरी पकड़ है और तमाम नेताओं के साथ भी समन्वय है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस खेमें में बंटी रही और कमजोर होती गई। लेकिन इस बार कांग्रेस को यहां कुछ बेहतर करने की उम्मीद है। वहीं बीजेपी को भरोसा है की वो एक बार फिर सत्ता अपने पास रखने में कामयाब होगी। लेकिन बीजेपी के लिए टिकट बंटवारे से पहले बागियों और दागियों ने चिंता बढ़ा दी है।

बागी ठोक रहे हैं ताल

खबर है कि पिछले चुनाव में पार्टी से बगावत कर अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कई नेता इस बार पार्टी में वापसी की कवायद में हैं और वो प्रदेश के बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। वापसी के साथ वो टिकट के लिए भी ताल ठोक रहे हैं। वहीं इनकी वापसी को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। पिछले चुनाव में टिकट नहीं मिलने के बाद जशपुर में बागी हुए गणेशराम भगत इस बार जुगत में हैं लेकिन जूदेव परिवार उनका विरोध कर रहा है। पर पार्टी गणेशराम भगत पर नजर बनाए हुए है। भगत के बागी होने के बावजूद बीजेपी ने जशपुर में तीनों सीटों पर जीत हासिल की थी।

बस्तर और सरगुजा में भी दावेदारी

बस्तर जिले में भी एक दर्जन नेता पार्टी में वापसी की फिराक में हैं और अलग-अलग सीटों से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। सरगुजा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिव प्रताप सिंह के बेटे विजय प्रताप भी टिकट चाह रहे है। वो सरगुजा की प्रेमनगर, भटगांव और प्रतापुपर विधानसभा सीटों मे से किसी एक पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन खबर है कि उनके खिलाफ संगठन के सक्रिय नेताओं ने ही वरिष्ठ नेताओं से शिकायत की है। विजय प्रताप पर जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए गड़बड़ी करने का आरोप है। विजय प्रताप ने पिछले चुनाव में बागी होकर बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। ऐसे में कहा जा रहा है कि जो व्यक्ति अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया उसका क्या जनाधार होगा।

स्थानीय नेता हैं खिलाफ

इन तमाम नेताओं की वापसी का स्थानीय नेता विरोध कर रहे हैं और उन्होंने राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री सौदान सिंह और प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को भी इन दागी और बागियों को टिकट नहीं देने के लिए कहा है। इनका कहना है कि अगर इन लोगों को टिकट दिया जाता है तो इससे समर्पित कार्यकर्ता नाराज हो सकते हैं और चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसके बाद सौदान सिंह और धरमलाल कौशिक नेताओं को नसीहत दे रहे हैं कि जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी न की जाए।