केरल की सिस्टर और पादरी को थमाया गया धार्मिक समूह की ओर से चेतावनी पत्र

केरल की एक सिस्टर और एक पादरी को एक धार्मिक समूह की ओर से चेतावनी पत्र और एक नोटिस थमाया गया है. यह पत्र और नोटिस यह बताने के लिए काफी है कि पंजाब में एक पादरी के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोपों का असर अभी भी केरल में बरकरार है.

यह मामला दरअसल बीते साल का है जब केरल की एक नन ने एक पादरी पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे और उसकी शिकायत चर्च के प्रबंधकों से की थी.

जब नन की शिकायत के बाद भी अभियुक्त पादरी के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया गया तब कुछ नन इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गईं.

पंजाब में जालंधर के बिशप फ़्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ एक नन ने आरोप लगाए थे उन्होंने साल 2014 से 2016 के बीच 13 बार कथित तौर पर उनका यौन शोषण किया. उन्होंने अपनी शिकायत चर्च में की लेकिन उस पर लंबे वक़्त तक कोई ध्यान नहीं दिया गया.

इसके बाद सिस्टर लूसी कलप्पुरा और फादर ऑगस्टीन वेट्टोली ने बिशप फ़्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई, इस शिकायत पर बिशप फ़्रैंको मुलक्कल को कुछ वक़्त के लिए गिरफ़्तार भी किया गया. लेकिन कैथोलिक चर्च ने इसके बावजूद अभियुक्त बिशप के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया.

‘मैंने कोई ग़लत काम नहीं किया’

बुधवार को सिस्टर लूसी को वायनड में स्थित फ्रांसिस्कन क्लेरिस्ट धार्मिक समूह के सुपीरियर जनरल के सामने पेश होना था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

दरअसल उन्हें भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि वे अपने काम के लिए माफी मांगे. चेतावनी पत्र में लिखा है कि उन्होंने आज्ञा मानने की प्रतिज्ञा का उल्लंघन किया है जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए.

सिस्टर लूसी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “मेरा मानना है मैंने कोई ग़लत काम नहीं किया, जैसा कि वो सोच रहे हैं. मैंने जो किया वो सिस्टर (वह नन जिनका कथित रूप से बिशप ने बलात्कार किया) के समर्थन में बिल्कुल सही था. सभी सिस्टरों को उस सिस्टर के समर्थन में साथ खड़ा होना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. यह उनकी ग़लती है, मेरी नहीं,”

साथ ही उन्होंने कहा, “वो जो चाहें करें. मैं इसे लेकर परेशान नहीं हूं.”

बिशप फ़्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर पिछले साल सितंबर में कोच्चि में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन में मिशनरी ऑफ़ जीसस की कई ननों के साथ सिस्टर लूसी भी शामिल हुई थीं.

क्यों भेजा गया नोटिस?

पीड़िता के पुलिस में शिकायत दर्ज करने के बाद इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन “सेव अवर सिस्टर्स” कमेटी ने किया था.

पीड़िता ने यह कदम तब उठाया जब तय प्रक्रियाओं का पालन करने और कई प्रयासों के बावजूद चर्च के बड़े अधिकारियों से अभियुक्त बिशप के ख़िलाफ़ कोई भी कदम नहीं उठाया.

चर्च की प्रक्रिया के मुताबिक, आमतौर पर ऐसी शिकायतें चर्च के उच्च अधिकारियों की तरफ से पुलिस को भेजी जाती हैं.

विरोध प्रदर्शन को तब बड़ा बढ़ावा मिला जब पीड़िता की सहकर्मी मिशनरी ऑफ़ जीसस की पांच ननें मानदंडों की अवहेलना करते हुए सार्वजनिक रूप से केरल के अर्नाकुलम में विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गईं.

इस विरोध प्रदर्शन के बाद केरल पुलिस की एक स्पेशल टीम ने लगभग 30 घंटे तक बिशप से पूछताछ की और फिर बिशप फ़्रैंको की गिरफ़्तारी की गई. गिरफ़्तारी के बाद 22 सितंबर को विरोध प्रदर्शन समाप्त हुए. हालांकि फिलहाल बिशप फ़्रैंको ज़मानत पर बाहर हैं

विरोध प्रदर्शन समाप्त होने के कई हफ़्तों तक कुछ नहीं हुआ. फिर 11 नवंबर को अर्नाकुलम-अंगामले के प्रशासनिक धार्मिक नेता बिशप जैकब मैनाथोडथ की तरफ से फ़ादर ऑगस्टीन वेट्टोली के नाम कारण बताओ नोटिस जारी किया गया.

इस नोटिस में फ़ादर ऑगस्टीन वेट्टोली को ‘सेव अवर सिस्टर्स’ के साथ उनके संबंध पर सफ़ाई देने के लिए कहा गया था.

फादर ऑगस्टीन ने बताया कि उनका अभियान चर्च के ख़िलाफ़ नहीं था, लेकिन बिशप जैकब ने उन्हें ‘सेव अवर सिस्टर्स’ से फौरन हटने को कह दिया.

‘चर्च का यौन शोषण पर रुख़ साफ़ नहीं’

फ़ादर अगस्टीन ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा, ”18 जनवरी तक सिनेड (पादरियों की सभा) जारी है और तब तक मैंने तय किया है कि मैं बिशप जैकब की चिट्ठी का जवाब नहीं दूंगा.

फ़ादर अगस्टीन ने बताया, ” पोप फ़्रांसिस ने बेहद कड़े शब्दों में कहा है कि यौन शोषण को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ना सिर्फ़ यौन शोषण बल्कि इसे छुपाने के कृत्य को भी कैथोलिक चर्च बर्दाश्त नहीं करेंगे. लेकिन केरल के चर्च ने यौन शोषण पर अपना रूख साफ़ नहीं किया है. ”

माना जा रहा है कि चर्च प्रशासन को इस बात का डर सता रहा है कि आने वाले वक़्त में अगर नन सवाल पूछने लगेंगी तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ जाएगा. यहां नन को सवाल पूछने की अनुमति नहीं है. आज्ञा की आड़ में उन्हें ना कोई फ़ैसले लेने की स्वतंत्रता है और ना ही आंदोलन करने की.

साल 2015 में चर्च ने सिस्टर लूसी से ड्राइविंग सीखने, लाइलेंस बनवाने और एक कविता संग्रह छपवाने पर स्थानांतरण आदेश की अवज्ञा करने के लिए प्रश्न पूछे थे.

इस बार जारी किए गए चेतावनी पत्र और नोटिस में सिस्टर लूसी से ये सवाल पूछा गया कि वे 20 सितंबर के विरोध प्रदर्शन में शामिल क्यों हुई थीं. इसके साथ ही उनसे ये भी पूछा गया कि उन्होंने अखबारों में लेख लिखे और टीवी चैनलों पर की बहस में हिस्सा लिया.

इस सभी सवालों के जवाब में सिस्टर लूसी ने कहा था कि ये उनके मनवाधिकार के दायरे में आते है.

ये क्यों हो रहा है?

फ़ादर ऑगस्टीन कहते हैं, ” ईसा मसीह की ‘आज्ञा के अनुपालन’ को चर्च अधिकारियों की आज्ञा के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में सवाल यह है कि नन लोगों को दोयम दर्ज़े के नागरिक के तौर पर देखा जाता है. ईसा मसीह के सामने पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं है तो पादरी और नन के बीच अंतर क्यों किया जाता है.”

महिलावादी कोचुरानी अब्राहम ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”भारत सहित दुनियाभर के कैथोलिक गिरिजाघरों में एक तय धार्मिक नियम हैं कि कैसे एक पादरी काम करेगा और कैसे एक नन काम करेगी. हमारे यहां महिलाओं के लिए ये और भी मुश्किल है क्योंकि यहां ऊंचे पदों पर पुरुषों का दबदबा है. ”

कोचुरानी सालों पहले ख़ुद नन के पद से अलग हो चुकी हैं. वह कहती हैं, ”भारत में महिलाओं के लिए धार्मिक जीवन कठिन है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चर्च कड़े नियमों का पालन करता है. ये नियम चर्च के नेता बनाते हैं जिनका दिमाग पूरी तरह पितृसत्तात्मक होता है.”

कोचुरानी का मानना है कि ये बेहद ज़रूरी है कि चर्च पादरियों और नन के बीच संवाद स्थापित करें. यह बेहद ज़रूरी है कि अब चर्च महिलाओं को एक वस्यक के तौर पर समझे.

इस बीच एक सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या सिस्टर लूसी और फ़ादर ऑगस्टीन के ख़िलाफ़ चर्च की कार्रवाई से लोगों की सोच पर सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा?