अयोध्या के राम मंदिर मामले पर सुनवाई, जानें क्या हैं अड़चने

उच्चतम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या के राम मंदिर मामले पर सुनवाई की. राष्ट्र के मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद जस्टिस रंजन गोगोई ने पहली बार इस मसले पर सुनवाई की.माना जा रहा था कि न्यायालय नियमित सुनवाई को लेकर कोई अहम निर्णय दे सकती है लेकिन उसने अगले वर्ष जनवरी तक के लिए इसे लटका दिया है. न्यायालय ने यह भी नहीं बताया है कि जनवरी में किस तारीख से राम मंदिर को लेकर सुनवाई होगी.
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राम मंदिर को लेकर राष्ट्र की सियासत में गहमा-गहमी का माहौल बनने लगा है. जहां एक तरफ गवर्नमेंट पर विपक्षी पार्टियां अध्यादेश या कानून बनाकर मंदिर निर्माण के लिए दबाव डाल रही हैं. वहीं उसके अंदर से भी मंदिर निर्माण को लेकर आवाजें उठने लगी हैं. मगर गवर्नमेंट के लिए ऐसा करना सरल नहीं होगा क्योंकि उसकी राह में बहुत से रोड़े हैं. आज हम आपको बताते हैं इस मामले से जुड़ी कुछ अड़चने.

1993 में आया था कानून

केंद्र गवर्नमेंट 1993 में अयोध्या अधिग्रहण अधिनियम लेकर आई थी. जिसके तहत विवादित भूमि  उसके आस-पास की जमीन का अधिग्रहण करते हुए पहले से जमीन टकराव को लेकर दाखिल याचिकाओं को समाप्त कर दिया गया था. गवर्नमेंट के इस अधिनियम को उच्चतम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसके बाद 1994 में न्यायालय ने इस्माइल फारूखी मामले में आदेश देते हुए तमाम दावेदारी वाली अर्जियों को बहाल कर दिया था  जमीन केंद्र गवर्नमेंट के पास रखने को बोला था. न्यायालय ने आदेश दिया था कि जिसके पक्ष में निर्णय आएगा उसे जमीन सौंप दी जाएगी.

दोबारा नहीं बनेगा कानून

मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट जफरयाब जिलानी का कहना है कि अयोध्या अधिग्रहण अधिनियम 1993 में लाए गए कानून को उच्चतम कोर्ट मे चुनौती दी गई थी. उस समय न्यायालयने बोला था कि अधिनियम लाकर अर्जियों को समाप्त करना गैर संवैधानिक है. गवर्नमेंट लंबित मामले पर कानून नहीं ला सकती है. यह न्यायिक प्रक्रिया में दखलअंदाजी होगा.

बरकरार रहेगी यथास्थिति

इलाहाबाद उच्च कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एसआर सिंह का कहना है कि विधायिका उच्चतम कोर्ट के आदेश को खारिज या निष्प्रभावी करने के मकसद से कानून में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं कर सकती है. बल्कि वह निर्णय के आधार पर कानून में परिवर्तन कर सकती है. अयोध्या मंदिर मामला अभी राष्ट्र के उच्चतम कोर्ट में लंबित है  वहां यथास्थिति को बरकरार रखने के लिए बोला गया है. यदि गवर्नमेंट ऐसे में कोई कानून बनाती है तो यह अदालती कार्यवाही में दखल होगा.

मामला लंबित रहने तक नहीं बनेगा कानून

दिल्ली उच्च कोर्ट के सेवानिवृत्त जज आरएस सोढ़ी ने अयोध्या मामले पर बोला कि उच्चतम कोर्ट ने 1994 में एक निर्णय दिया था. तमाम पक्षकारों ने इलाहाबाद उच्च कोर्ट के आदेश को उच्चतम कोर्ट में चुनौती दी है. जहां मामला लंबित है. ऐसी हालात में गवर्नमेंट आधिकारिक तौर पर कोई दखल नहीं दे सकती है. हालांकि पक्षकार चाहें तो वह किसी भी समय आपसी समझौता कर सकते हैं.