केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति (उत्पीडन) संशोधन कानून, 2018 जायज ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सरकार ने कहा है कि संशोधित कानून को चुनौती देने वाली याचिका विचारयोग्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने कहा है कि उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटकर संशोधित कानून बनाने का अधिकार है। सरकार ने कहा कि वर्षों से एससी-एसटी समुदाय प्रताडना का शिकार होते रहे हैं और हो रहे हैं। हालत यह है कि कानून होने के बावजूद उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार ने संशोधन कानून को संविधान के विपरीत होने से साफ इनकार किया है। सरकार ने कहा है कि इस कानून केतहत दर्ज मामलों में सजा की दर कम है लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि कानून का एससी-एसटी समुदाय के लोगों के साथ उत्पीडन नहीं हो रहा है या कानून का दुरूपयोग हो रहा है।
यह जरूर है कि ऐसे मामलों में 24 से 28 फीसदी के बीच ही सजा हुई है लेकिन इसकी वजह देर से मुकदमे दर्ज होना, सही जांच न होना, गवाहों का मुकराना आदर है। अब भी एससी-एसटी समुदाय के लोग अस्पर्शयता के शिकार हैं। सरकार ने कहा है कि 14 राज्यों में 195 स्पेशल कोर्ट होने के बावजूद एससी-एसटी एक्ट से जुड़े 89 मामले लंबित हैं। सरकार ने इस मामले में अग्रिम जमानत न होने के प्रावधान को भी जायज ठहराया है। केंद्र सरकार ने अपना जवाब पृथ्वी राज चौहान, प्रिया शर्मा सहित अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर दिया है। याचिकाओं में एससी-एसटी (उत्पीडन) संशोधन कानून, 2018 को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने कानून में संशोधन कर 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए आदेश को पूरी तरह से दरनिकार कर दिया है।
यानी इस संशोधित कानून के जरिए पहले जैसे स्थिति बहाल कर दी गई। याचिका में गुहार की गई है कि संशोधित कानून को निरस्त कर दिया जाए और 20 मार्च के आदेश को बहाल किया जाए। संशोधित कानून के जरिए 20 मार्च के आदेश केतीन अहम बिन्दुओं को दरकिनार कर दिया गया है। मालूम हो कि गत 20 मार्च को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरूपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। साथ ही इसमें अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी जोड़ दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच होनी चाहिए। साथ ही सरकारी अधिकारियों की गिरफ्तार करने से पहले नियुक्त करने वाली अथॉरिटी से अनुमति लेनी होगी। इसे आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जो फिलहाल लंबित है। इसी दौरान सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया और पहले जैसी स्थिति बहाल कर दी। यानी अब फिर से दलितों को सताने की शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी होगी। आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिल पाएगी। साथ ही एफआईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अगले महीने होनी है।