आखिर इस सब्जी को काटने से क्यों घबराती है महिलाएं, सच जानकार उड़ जायेंगे आपके होश…

हिंदू समाज में कद्दू का पौराणिक महत्व है. विभिन्न् अनुष्ठानों में जहां बतौर बकरा के प्रतिरूप में रखिया की बलि दी जाती है. वहीं कद्दू को ज्येष्ठ पुत्र की तरह माना जाता है. बस्तर की आदिवासी महिलाएं भी इसे काटने से घबराती है.

लोक मान्यता है कि किसी महिला द्वारा कद्दू को काटने का आशय अपने बड़े बेटा की बलि देना होता है, इसलिए यहां की महिलाएं पहले किसी पुरुष से पहले कद्दू के दो टुकड़े करवाती हैं, उसके बाद ही वह इसके छोटे तुकड़े करती हैं. यह भी परंपरा है कि कद्दू को कभी भी अकेला नहीं काटा जाता. हमेशा एक साथ दो कद्दू ही काटा जाता है लेकिन एक कद्दू ही काटना पड़े तो इसकी जोड़ी बनाने के लिए एक नींबू, मिर्च या आलू का उपयोग कर लिया जाता है.

आदिवासी समाज के वरिष्ठ तथा हल्बा समाज के संभागीय अध्यक्ष अधिवक्ता अर्जुन नाग बताते हैं कि पुरानी सामाजिक मान्यता है कि अगर तोड़ते समय नारियल सड़ा निकले तो लोग इसे अशुभ मानते हैं. कद्दू के साथ भी कुछ ऐसा ही है. इसे महत्वपूर्ण सामाजिक फल माना जाता है. कहा भी जाता है कि कद्दू कटा तो सब में बंटेगा. एक कद्दू की सब्जी कम से कम 30-40 लोगों के लिए पर्याप्त होती है लेकिन अचानक यह खराब निकल जाए तो भोज कार्यक्रम में रुकावट आती है और दूसरी सब्जी तलाशने में समय और धन दोनों जाया होता है.

उपरोक्त धारणा के चलते ही अगर कोई महिला कद्दू काटे और वह सड़ा निकल जाए तो समाज महिला पर अशुद्ध होने का आरोप लगा देता है, इसलिए लोक-लाज से बचने भी महिलाएं कद्दू काटने से बचती हैं.

बस्तर में आदिवासी समाज कद्दू इस कारण रोपते हैं ताकि अपने परिजन या समाज को भेंट कर सकें, इसलिए यहां कद्दू को सामाजिक सब्जी माना जाता है. कभी भी एक कद्दू को दो-चार लोगों के लिए कभी नहीं काटा जाता. आदिवासी समाज में परंपरा है कि जब किसी रिश्तेदार के घर या प्रियजन के घर सुख या दुख का कार्य होता है.

लोग उनके घर आमतौर पर कद्दू भेंट करते हैं. बताया गया कि एक कद्दू से कम से कम 40 लोगों के लिए सब्जी तैयार हो जाती है. कद्दू सुलभ और लंबे समय तक सुरिक्षत रहने वाली सब्जी होता है, इसलिए इसे यहां आमतौर पर बड़े भोज में उपयोग के लिए ही उपजाया जाता है.