
नई दिल्ली :भारत को 10 मिनट की डिलीवरी की जरूरत नहीं है। यह एक अमानवीय और अस्थायी है। क्विक कॉमर्स के नाम पर 10 मिनट की डिलीवरी मॉडल का चलन न केवल व्यापारिक नैतिकता और इस सिस्टम में काम करने वाले लोगों के कल्याण एवं स्वास्थ्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि देश की पारंपरिक खुदरा व्यापार व्यवस्था के अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न करता है। केवल सुविधा के नाम पर 10 मिनट की डिलीवरी का यह जुनून न तो आवश्यक है और न ही मानवीय। भारत को ऐसे क्विक कॉमर्स मॉडल की आवश्यकता नहीं है, जो श्रमिकों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से खिलवाड़ करता हो। यह बात भाजपा सांसद एवं कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कही है।
खंडेलवाल ने अपने बयान में कहा, क्विक कॉमर्स की व्यापार-विरोधी सोच और मानवीय मूल्यों व गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला दृष्टिकोण अत्यंत निंदनीय है। इसी के विरोध में कैट द्वारा ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन तथा ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन, ‘क्विक कॉमर्स का कुरूप चेहरा’ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन 22 अप्रैल को नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है।
खंडेलवाल ने जोर देते हुए कहा कि भारत को 10 मिनट की डिलीवरी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि देश में पहले से ही पारंपरिक किराना दुकानों का एक मजबूत, विश्वसनीय और वर्षों से आजमाया हुआ नेटवर्क मौजूद है, जो न केवल सुविधाजनक है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से करोड़ों परिवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भी है।
उन्होंने कहा कि 10 मिनट की डिलीवरी प्रणाली इन छोटे दुकानदारों को कमजोर करती है और साथ ही डिलीवरी कर्मचारियों पर मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यधिक दबाव डालती है। ये कर्मचारी अव्यवहारिक लक्ष्यों और असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों खतरे में पड़ जाते हैं।
बतौर खंडेलवाल, क्या हम कुछ मिनटों की गति के लिए मानव गरिमा और खुदरा व्यापार की स्थिरता से समझौता करने को तैयार हैं। अस्थायी और शोषणकारी मॉडल को बढ़ावा देने की बजाय, सरकार और नीति-निर्माताओं को स्थानीय व्यापारियों को डिजिटल उपकरण, आधारभूत संरचना और न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा के अवसरों से सशक्त बनाना चाहिए। खुदरा व्यापार को मजबूत करना न केवल आर्थिक रूप से उचित है बल्कि सामाजिक रूप से भी उत्तरदायी कदम है।