
नई दिल्ली: संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने रविवार को कहा कि ‘राष्ट्र पुनर्निर्माण’ के एक आंदोलन के रूप में शुरू हुए संघ ने उपेक्षा और उपहास से जिज्ञासा और स्वीकार्यता तक का रास्ता तय किया है। उन्होंने संगठन के संकल्प को पूरा करने के लिए लोगों से संघ में शामिल होने की अपील की। विश्व संवाद केंद्र भारत की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख ‘आरएसएस एट 100’ में उन्होंने कहा, ‘संघ किसी का विरोध करने में विश्वास नहीं करता है और उसे विश्वास है कि संघ का विरोध करने वाला व्यक्ति एक दिन संघ में शामिल हो जाएगा।’
‘दुनिया की चुनौतियों का समाधान दे सकता है भारत का प्राचीन ज्ञान’
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि ‘जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से लेकर हिंसक संघर्षों तक कई चुनौतियों से जूझ रही है, तो भारत का प्राचीन ज्ञान समाधान देने में सक्षम है। उन्होंने कहा, ‘यह चुनौतीपूर्ण काम तभी संभव है जब भारत माता की हर संतान इस भूमिका को समझे और एक ऐसा घरेलू मॉडल बनाने में योगदान दे, जिसका दूसरे लोग भी पालन करें।’ उल्लेखनीय है कि विश्व संवाद केंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध एक मीडिया सेंटर है। साल 1925 में विजयादशमी के अवसर पर संघ की स्थापना हुई थी।
‘यह संतों के योगदान को याद करने का समय’
अपनी स्थापना के बाद से आरएसएस की यात्रा पर होसबोले ने कहा, ‘पिछले सौ वर्षों में, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के एक आंदोलन के रूप में संघ ने उपेक्षा और उपहास से जिज्ञासा और स्वीकृति की यात्रा की है।’ उन्होंने कहा, ‘संघ के लिए यह बात अपनी स्थापना के समय से ही स्पष्ट रही है कि ऐसे अवसर उत्सव मनाने के लिए नहीं होते, बल्कि हमें आत्मचिंतन करने और अपने उद्देश्य के प्रति फिर से समर्पित होने का अवसर प्रदान करते हैं।’ होसबोले ने कहा कि यह उन संतों के योगदान को स्वीकार करने का भी समय है, जिन्होंने इस आंदोलन का मार्गदर्शन किया।