शिवसेना के अध्यक्ष रहे उद्धव ठाकरे का कार्यकाल पूरा , अब दोबारा अध्यक्ष चुने जाने की अनुमति नहीं

सली शिवसेना कौन सी है? फिलहाल इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका है और भारत निर्वाचन आयोग में भी प्रक्रिया जारी है। इसी बीच शिवसेना के अध्यक्ष रहे उद्धव ठाकरे का कार्यकाल 23 जनवरी को समाप्त हो चुकी है।

सीएम शिंदे ने बीते साल जून में शिवसेना में बगावत कर दी थी और करीब 40 विधायकों ने उनका साथ दिया था। कहा जा रहा है कि इसके साथ ही उद्धव ने सबसे मुश्किल चुनौती का सामना किया। नतीजा यह हुआ कि जुलाई में शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी।

अब शिवसेना दो गुटों में बंट चुकी थी और मामला अदालतों और चुनाव आयोग तक पहुंचा। अक्टूबर 2022 में आयोग ने अंतरिम आदेश जारी किया और शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न फ्रीज कर दिया था। बाद में उद्धव ने अपने गुट की पहचान के तौर पर नाम ‘उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ चुना, जिसका चिह्न ‘मशाल’ था। वहीं, शिंदे गुट के ‘बालासाहेबांची शिवसेना’ की पहचान ‘एक ढाल और दो तलवार बनीं।’

फिलहाल, आयोग ने उद्धव की अगुवाई वाले गुट को राष्ट्रीय कार्यकारिणी गठित करने और उन्हें दोबारा अध्यक्ष चुनने की अनुमति नहीं दी है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि आयोग 30 जनवरी को मामले की सुनवाई कर सकता है, जिसका अंतिम आदेश फरवरी में जारी हो सकता है।

अब मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की वजह से बने हालात के बाद चुनाव आयोग में फंसे पेंच के चलते उन्हें दोबारा अध्यक्ष चुने जाने की अनुमति नहीं है।30 जनवरी 2003 में को उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने महाबलेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ और यहां मुहर लग गई कि उद्धव ही बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी होंगे। हालांकि, बाद में उद्धव और राज के बीच पार्टी पर नियंत्रण को लेकर जमकर तनातनी हुई।

नतीजा यह हुआ कि साल 2005 में उन्होंने दल से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। वहीं, साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष बनाया गया।