नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ईडी अधिकारी अंकित तिवारी के खिलाफ रिश्वत लेने के मामले में सुनवाई करते हुए प्रतिस्पर्धी मुद्दों के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारियों की जांच राज्य पुलिस द्वारा की गई है या की जा रही है ऐसे मामलों में प्रतिस्पर्धी पहलुओं के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि संघीय ढांचे में, यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक घटक अपनी पहचान और अधिकार क्षेत्र बरकरार रखे। इस दौरान पीठ ने एक काल्पनिक स्थिति का हवाला भी दिया। अदालत ने कहा कि अगर कोई राज्य केंद्र सरकार के अधिकारियों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने का फैसला करता है, तो इससे संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में अगर यह कहा जाता है कि राज्य के पास गिरफ्तारी की विशेष शक्ति है, तो यह संघीय ढांचे के लिए खतरनाक हो सकता है। हालांकि पीठ ने यह भी कहा कि राज्य पुलिस को उसके अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी मामले की जांच करने की शक्ति से वंचित करना भी ठीक नहीं होगा।
सभी दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि हम इन प्रतिस्पर्धी पहलुओं के बीच संतुलन बनाने के लिए दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करेंगे। इसमें कहा गया है कि हालांकि एक आरोपी जांच में अपनी बात नहीं रख सकता, लेकिन उसे निष्पक्ष जांच का अधिकार है। फिलहाल पीठ ने मामले की सुनवाई जनवरी में तय की है। शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को तिवारी को अंतरिम जमानत दे दी थी।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें उसके अधिकारी अंकित तिवारी के खिलाफ एक मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। अंकित तिवारी को तमिलनाडु सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) ने कथित रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार किया था।