काबुल की इस जेल में आज भी कैद है करीब दो हजार तालिबानी आतंकी

पुल-ए-चरखी जेल अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के बाहरी इलाके में है। विशाल भूरे पत्थरों वाली दीवारें इसकी पहरेदार हैं, जिनके ऊपर कंटीली तारें भी लगी हुई हैं। इस दीवार में थोड़ी-थोड़ी दूर पर निगरानी टॉवर भी लगे हुए हैं, जिन से कैदियों पर निगाह रखी जाती है। इस जेल में आने-जाने के लिए इस्पात के विशाल फाटक बने हुए हैं। पुल-ए-चरखी जेल में करीब दस हजार लोग कैद हैं। इन में से करीब दो हजार कैदी अफगानिस्तान के चरमपंथी इस्लामी संगठन तालिबान से ताल्लुक रखते हैं। तालिबानी कैदी मौलवी फजल बारी कहते हैं कि वो लड़ने के लिए नहीं पैदा हुआ थे। लेकिन, जेल में पांच बरस बिताने के बाद अब उन्हें शिद्दत से इस बात का एहसास होता है कि वो लड़ते-लड़ते जान दे दें। मौलवी फजल बारी कहते हैं, “मैं इस कदर उकता गया हूं कि जो मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि मैं खुदकश बॉम्बर बनूंगा, लेकिन, अल्लाह पाक की कसम अब मैं वो भी कर गुजरने को तैयार हूं।”

हालांकि, फिलहाल तो मौलवी फजल बारी इस बेहद सख्त सुरक्षा इंतजाम वाली जेल में ही कैद रहेंगे। लेकिन, काबुल की पुल-ए-चरखी जेल, अफगानिस्तान की उन जेलों में से एक है, जहां से तालिबानी चरमपंथियों को धीरे-धीरे बड़ी तादाद में रिहा किया जा रहा है। अफगानिस्तान की हुकूमत, तालिबान से बंद पड़ी शांति वार्ता की बहाली से पहले सद्धभावना के तौर पर तालिबानी लड़ाकों को रिहा कर रही है।

तालिबान ने लंबे समय से एलान किया हुआ है कि उनका अंतिम लक्ष्य अफगानिस्तान में दार-उल-इस्लाम यानी इस्लामी कानूनों पर चलने वाली अमीरत या हुकूमत कायम करनी है। जब 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर तालिबान का राज था, तो उन्होंने इसी तरीके से सरकार चलाई थी। उस वक्त की तालिबानी सरकार ने अफगानिस्तान में शरीयत कानून लागू किया था।

और, उनकी हुकूमत बेहद सख्त थी। महिलाओं का सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होना पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया था। साथ ही तमाम जुर्म के लिए पत्थर से पीट कर मारने, हाथ-पैर काटने जैसी सजाएं दी जाती थीं। अभी ये साफ नहीं है कि अगर भविष्य में अफगानिस्तान पर तालिबान का राज कायम हुआ, तो वो किस तरह की सरकार चलाएंगे।

2001 में अमेरिका ने 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद तालिबान की हुकूमत का खात्मा कर दिया था। तब से अब तक अफगानिस्तान में हजारों लोग मारे जा चुके हैं। इन में बड़ी तादाद में मारे गए बेगुनाह शहरी शामिल हैं। जब हम पुल-ए-चरखी जेल में तालिबानी चरमपंथियों से मिले, तो उन्होंने हम से खुल कर बातें कीं। अपनी जिंदगी के मकसद बताए। अपनी शिकायतें बयां कीं। हालांकि उन्होंने अपनी गतिविधियों के बारे में बहुत बारीकी से जानकारी नहीं दी।