पूरे देश में फैले शेयर ब्रोकर्स के ऐसे नेटवर्क का इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन टीम ने किया पर्दाफाश

मुंबई की इनकम टैक्स इन्वेस्टिगेशन टीम ने पूरे देश में फैले शेयर ब्रोकर्स के ऐसे नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जो फर्जी ट्रेड करके अपने कस्टमर के घाटे और लाभ के साथ कालेधन को भी साफ करते थे. टैक्स विभाग ने देशभर में ब्रोकर्स के कई ठिकानों पर छापे मारकर करीब 6,000 करोड़ रुपये की फर्जी ट्रेडिंग को पकड़ा है.

टैक्स अधिकारी ने कहा, ”अभी तो यह शुरुआत भर है, हम जल्द ही बड़ी मछलियों तक पहुंचने वाले हैं. शेयर बाजार को पारदर्शी बनाने के लिए जरूरी है कि ऐसे लोगों को इससे बाहर किया जाए.” टैक्स अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर इंडिया टुडे से कहा कि इसमें बुलियन कारोबार से जड़ी कंपनियों के अलावा कई बड़े ब्रोकरेज हाउस भी हैं. इस ऑपरेशन के बाद हमें कई बड़े सुराग मिले हैं.

दिल्ली-एनसीआर में छापेमारी

टैक्स विभाग ने दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, मुंबई, कानपुर, कोलकाता जैसे शहरों में ब्रोकर्स और ट्रेडिंग मेंबर्स के कुल 39 ठिकानों पर छापेमारी की. छापेमारी की कार्रवाई मंगलवार सुबह से शुरू होकर शनिवार को खत्म हुई. वित्त मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि ये ब्रोकर्स टैक्स चुराने वालों को मदद करते हैं.” ब्रोकर्स खुद और दूसरे अन्य ब्रोकर्स के साथ साजिश करके खुद ही सौदा काट लेते थे. सबकुछ पहले से तय होता था कि किस क्लाइंट के ट्रेड को घाटा दिखाना है किसे फायदा. ज्यादातर ये जालसाजी का ट्रेड वायदा कारोबार के तहत ईलिक्विड ऑप्संस में हो रहा था.”

ट्रडिंग को किया मॉनिटर

छापेमारी से पहले छह महीने तक इन ब्रोकर्स के ट्रेडिंग को मॉनिटर किया. उसके बाद संदेहास्पद ट्रेडिंग से जुड़े आंकड़ों को लेकर मुंबई टैक्स इन्वेस्टिगेशन टीम के नेतृत्व में करीब 90 टैक्स अधिकारियों ने पूरे देश में ऐसे ब्रोकर्स के ठिकानों पर धावा बोल दिया. टैक्स अधिकारी ने कहा कि जिन ब्रोकर्स के यहां छापेमारी हुई है उनमें से करीब 80 फीसदी ब्रोकर्स ने अपने शुरुआती बयान में ये मान लिया कि क्लाइंट के लिए ये गलत काम कर रहे थे.

शेयर बाजार के रेगुलेटर सेबी ने भी समय-समय पर वादी करोबार से जुड़े सिंक्रोनाइज्ड ट्रेडिंग के जरिए गलत काम करने वालों पर सवाल उठाया है.

कैसे काम करता है डेरिवेटिव मार्केट?

आम लोग यही समझते हैं कि पैसे देकर शेयर खरीद लिए जाते हैं और बेचने वालों को पैसा मिल जाता है. लेकिन बड़ा कारोबार इससे अलग होता है, जिसे वायदा कारोबार या डेरिवेटिव कहते हैं. इसमें शेयरों की डिलिवरी नहीं होती. यहां शेयर का दाम कहां तक पहुंचेगा इस सपने का कारोबार होता है. इसे अंग्रेजी में ‘अंडरलाइंग एसेट वैल्यू’ कहते हैं.

शेयर खरीदने-बेचने के लिए कॉन्ट्रैक्ट

खरीदने और बेचने वाले में एक समझौता होता है कि एक तय समय सीमा और कीमत पर दूसरी पार्टी इन शेयर को खरीदेगी. इसे फ्यूचर डेरिवेटिव कहते हैं. मान लीजिए रमेश और सुरेश एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट करते हैं. कॉन्ट्रैक्ट की शर्त ये है कि रमेश XYZ बैंक के 100 शेयर 500 रुपये प्रति शेयर के रेट से अगले दो महीने के भीतर खरीद लेगा. इस बीच शेयर की कीमत 450 रुपये पर आ जाती है. ऐसे में रमेश को कॉन्ट्रैक्ट पर तय कीमत से 50 रुपये का नोशनल घाटा होने लगा. अब रमेश के पास दो विकल्प (ऑप्शन) हैं. या तो वो कॉन्ट्रैक्ट को दो महीने की एक्सपायर तारीख से पहले सेटल कर ले और सुरेश को 50 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से पैसा दे दे.

दूसरा ऑप्शन ये है कि रमेश एक्सपायरी तारीख (दो महीना) तक इंतजार करे. दूसरा- मान लीजिए एक्सापयरी के दिन XYZ की कीमत 475 रुपये पर आ जाती है, यानी तय कॉन्ट्रैक्ट के समय की कीमत से 15 रुपये कम. ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायर के समय रमेश को (15 रुपये X 100 शेयर) के हिसाब से सुरेश को 1500 रुपये देना होगा. गौर करिए, यहां वास्तव किसी फिजिकल शेयर का लेन-देन नहीं है. इस फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में रमेश ये कह कर कन्नी नहीं काट सकता है कि शेयर की कीमत उसके उम्मीद के मुताबिक नहीं है.

ये भी हैं विकल्प

लेकिन शेयर बाजार ने रमेश जैसे लोगों के लिए दो और विकल्प ढूंढ निकाले, जिसे ऑप्शन डेरिवेटिव कहते हैं. इसमें आपके पास ऑप्शंस होता है कि आप कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को पूरी तरह नहीं मानें. बस इस न मानने के लिए कॉन्ट्रैक्ट के वक्त सुरेश को थोड़ा पैसा दें दे. इसे घूस नहीं, शेयर बाजार इसे ‘प्रीमियम’ कहते हैं. ये ऑप्शन भी दो तरह के होते हैं अगर आप खरीदने का विकल्प लेते हैं तो इसे ‘कॉल ऑप्शन’ कहा जाएगा और बेचने के का विकल्प चुनते हैं तो ‘पुट ऑप्शन’. इस प्रीमियम को देकर रमेश XYZ के शेयर की कीमत में होने वाले घाटे के जोखिम को कम कर सकता है और अगर दो महीने में (एक्सपायरी तक ) शेयर की कीमत 500 से ऊपर हो जाती है तो पूरा फायदा रमेश को मिलेगा क्योंकि तय शर्त के मुताबिक उसे केवल हर शेयर के लिए 500 रुपये चुकाने हैं.

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत सहित शेयर बाजार के कुल टर्नओवर का बड़ा हिस्सा डेरिवेटिव में होता है. उदाहरण के लिए हमने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बांबे स्टॉक एक्सचेंज को पिछले पांच दिनों के मार्केट टर्नओवर को देखा. 97 फीसदी से ज्यादा कारोबार डेरिवेटिव यानी फ्यूचर एंड ऑप्शन जिसे बाजार में एफ एंड ओ भी कहा जाता है. डेरिवेवटिव या वायदा कारोबार आज की तारीख में हर बाजार में होता है चाहे वो शेयर बाजार हो या फिर करेंसी हो या कमोडिटी.