इस मुद्दे में आरएसएस व भाजपा ने तमाम नेताओं तथा लोगों से धैर्य भरी रिएक्शन की अपील की। इस वर्ष सितंबर में राजस्थान के पुष्कर में हुई संघ की मीटिंग में पूरी रणनीति पर चर्चा हुई। यहां संघ के शीर्ष नेताओं ने सदस्यों से साफ बोला कि उच्चतम न्यायालय में चाहे इस मुद्दे में जीत हो या हार, स्वयंसेवकों को शांत रहना है।
वहीं दिल्ली स्थित छतरपुर के ध्यान साधना केन्द्र में 30-31 अक्टूबर को हुई मीटिंग के बाद आरएसएस ने सार्वजनिक रूप से सभी लोगों से यही अपील दोहराई। आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अगली कुछ जनसभाओं में साफ शब्दों में बोला कि अयोध्या टकराव में अपने पक्ष में अगर निर्णय आए तो उसे जीत या पराजय की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद भी उन्होंने यही बात दोहराई।
1980 व 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के लिए जनसमर्थन जुटाने में अग्रणी रही दुनिया हिन्दू परिषद (VHP) ने भी भागवत की इस रणनीति को स्वीकार किया। एक वर्ष पहले जब उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मुद्दे की सुनवाई स्थगित की थी, तब वीएचपी ने देशभर में बड़े आंदोलन की चेतावनी दी थी। उसने दिल्ली में एक बड़ी रैली भी आयोजित की थी।
अक्टूबर 2018 में खुद भागवत ने भी प्रस्ताव रखा कि केन्द्र सरकार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून पारित कराना चाहिए। उन्होंने बोला था, ‘अयोध्या मुद्दे की सुनवाई में देरी की कोशिशें से समाज के धैर्य की इम्तिहान लेने जैसी हैं। ‘ इससे पहले तक वह लगातार इस टकराव के न्यायिक हल की ही बात कहते रहे हैं।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद मोहन भागवत व प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का सम्बोधन देश के साथ संसार भर के लिए एक संदेश था। यहां निर्णय के बाद राम भक्तों का उन्माद, या भारी जश्न या हिंसा भड़कने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुस्तान की छवि को ठेस पहुंचने का खतरा था।
अयोध्या टकराव पर निर्णय के बाद देशभर में शांति बनाए रखने में विपक्ष की किरदार से भी मना नहीं किया जा सकता। राहुल व प्रियंका गांधी से लेकर मायावती व अखिलेश यादव सहित तमाम विपक्षी पार्टियों ने ‘अब इससे आगे बढ़ते हैं’ की रणनीति के तहत लोगों से शांति व एकजुटता की अपील की। इस मुद्दे में लगभग सभी दल तथा नेता एकराय के साथ ही दिखे।