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भ्रामक विज्ञापनों को लेकर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट, दो महीने के भीतर शिकायत निवारण तंत्र बनाने के निर्देश

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत निवारण तंत्र बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे विज्ञापन समाज को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं, उन पर कड़ी निगरानी आवश्यक है। सरकार ने तंत्र स्थापित करने के लिए राज्यों को दो महीने का वक्त दिया है।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे 1954 के ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के तहत निषिद्ध आपत्तिजनक विज्ञापनों के खिलाफ आम जनता की शिकायतों के लिए एक उपयुक्त तंत्र तैयार करें। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भ्रामक विज्ञापनों पर सख्ती से रोक लगाने का रास्ता साफ हुआ है।

दो महीने में शिकायत निवारण तंत्र बनाने का आदेश
पीठ ने आदेश में कहा, “हम राज्यों को निर्देश देते हैं कि वे दो महीने के भीतर उचित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करें और इसकी उपलब्धता के बारे में नियमित रूप से प्रचार करें। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को पुलिस तंत्र को इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए संवेदनशील बनाने का भी निर्देश दिया।

विज्ञापन जारी करने से पहले स्व-घोषणा आवश्यक
इससे पहले शीर्ष अदालत ने 7 मई 2024 को आदेश दिया था कि कोई भी विज्ञापन जारी करने से पहले केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर, विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा प्राप्त की जाए।

पतंजलि और रामदेव के खिलाफ आईएमए की याचिका से उठा मामला
भ्रामक विज्ञापनों का मुद्दा उस समय उठा जब सुप्रीम कोर्ट 2022 में दायर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि पतंजलि और योगगुरु रामदेव ने कोविड वैक्सीनेशन अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ गलत प्रचार किया था।

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