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‘तोड़फोड़ से प्रभावित लोग अदालत आ सकते हैं’, राज्यों के खिलाफ अवमानना याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिकारियों द्वारा अदालत के आदेश की अवमानना का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मामले से नहीं जुड़ा है, इसलिए वह याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं। हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि जो लोग बुलडोजर कार्रवाई से प्रभावित हैं, वो अदालत आ सकते हैं।

‘हम भानुमति का पिटारा नहीं खोलना चाहते’
पीठ ने कहा कि ‘हम भानुमती का पिटारा नहीं खोलना चाहते हैं। विध्वंस से प्रभावित लोगों को न्यायालय आने दें’। दरअसल याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि हरिद्वार, जयपुर और कानपुर में अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद संपत्तियों को ध्वस्त किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि उनकी अनुमति के बगैर तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं की जाएगी, लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के अधिकारियों द्वारा कोर्ट के आदेश की अवमानना की गई।

याचिकाकर्ता के वकील ने दीं ये दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय का आदेश स्पष्ट था कि इस न्यायालय की अनुमति के बिना कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी’। उन्होंने आरोप लगाया कि एक मामले में एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि याचिकाकर्ता एक तीसरा पक्ष है और उसे तथ्यों की जानकारी नहीं है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जिसके खिलाफ तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई, वह फुटपाथ पर अतिक्रमण था जिसे अधिकारियों ने हटाया था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर अदालत का रुख किया था।

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