लालू यादव को लेकर सामने आई ये बड़ी खबर, पूरे बिहार में मचा हडकंप

बीजेपी के 39 विधायक जीतकर पहुंचे थे. केंद्र की वीपी सिंह सरकार की तर्ज पर बीजेपी ने बिहार में भी जनता दल सरकार को समर्थन दिया. जनता दल में चली रस्साकस्सी के बीच पार्टी के अंदर हुई वोटिंग में पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास को हराकर लालू यादव नेता चुने गए.

 

10 मार्च 1990 को लालू पहली बार बिहार के सीएम की कुर्सी पर बैठे. इसी के साथ लालू ने बिहार में कांग्रेस पार्टी के शासन का खात्मा कर दिया.

इसी बीच बिहार में विधानसभा का चुनाव हुआ. तब झारखंड का हिस्सा भी बिहार राज्य में ही था. 324 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस को सिर्फ 71 सीटें मिलीं. बहुमत के लिए कम से कम 163 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. जनता दल को 122 सीटें मिलीं, लेकिन बहुमत के लिए उसे और सीटों की जरूरत थी.

बात है साल 1990 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव की. इमरजेंसी के विरोध में जब देश में मंडल आंदोलन की लहर थी और दूसरी ओर बीजेपी कमंडल की राजनीति को धार देने में जुटी थी.

लेकिन कांग्रेस विरोध के मामले पर दोनों एकजुट थे. केंद्र में वीपी सिंह की अगुवाई में जनता दल की सरकार चल रही थी और बीजेपी का समर्थन उसे हासिल था.

हम बात कर रहे हैं सियासत के उस दौर की जब हर राजनीतिक दल का मुकाबला कांग्रेस से होता था और कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने के लिए तमाम विपक्षी दल उसके खिलाफ एकजुट हो जाया करते थे. जैसे आज मोदी और बीजेपी विरोध के नाम पर 20 से अधिक विपक्षी दल अपने मतभेद भुलाकर भी एक साथ एक मंच पर अक्सर दिख जाते हैं.

आज बिहार की सियासत हो या राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य, हर जगह लालू यादव को बीजेपी के मुखर विरोधी के रूप में जाना जाता है लेकिन सियासत में सबकुछ हमेशा एक जैसा नहीं रहता. आज जो दल या नेता दोस्त हैं .

वो कभी विरोधी खेमे में दिख सकते हैं तो आज के दुश्मन कभी सियासी दोस्त. ऐसी ही सियासी दोस्ती और दुश्मनी का नजारा कभी बिहार ने भी देखा था. जब लालू यादव को सीएम की कुर्सी बीजेपी के समर्थन से मिली थी.