पीएम मोदी के इस कदम से रातोरात देश हो गया था तबाह, यह गोपनीयता इसलिए बेहद जरूरी थी ताकि…

नोटबंदी के तीन साल पूरे हो चुके हैं. इसकी सफलता-असफलता को लेकर अलग-अलग दावे हैं, लेकिन एक बात पर हर कोई एकमत है, वह है इसको गोपनीय रखने की जबरदस्त सफलता. पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2016 के अपने ऐतिहासिक संबोधन से पहले अपने कुछ चुनिंदा अफसरों को छोड़कर देश में किसी को भनक नहीं लगने दी. प्रधानमंत्री ने नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक कदम के लिए अपने कुछ ऐसे भरोसेमंद अफसरों को चुना, जिन्हें देश के वित्तीय हलके में कम लोग ही जानते थे.

कौन लोग थे पीएम मोदी की गोपनीय टीम का हिस्सा

पीएम मोदी के इस कदम से रातोरात देश की 86 फीसदी नकदी को बेकार हो गई थी और अर्थव्यवस्था मुश्किल में पहुंच गई थी. तत्कालीन राजस्व सचिव हसमुख अधिया के साथ पांच अन्य जिन लोगों को इस बात की जानकारी थी, उन्होंने इसे बेहद गोपनीय रखा. पीएम मोदी के साथ साथ युवा रिसर्चर्स की एक टीम थी जो प्रधानमंत्री कार्यालय में ही बैठकर काम करती थी.

साल 2016 में आई इकनॉमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार वित्त मंत्रालय के प्रमुख अधिकारी अधिया बैकरूम टीम के समर्थन के साथ इस पूरे अभियान पर नजर रखे हुए थे. अधि‍या साल 2003 से 2006 तक नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव रह चुके हैं, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, इसलिए उनका मोदी से बहुत ही करीबी रिश्ता है. जब किसी मसले पर गहराई से चर्चा करनी होती तो दोनों आपस में गुजराती में बात करते थे.

क्यों जरूरी थी गोपनीयता

यह गोपनीयता इसलिए बेहद जरूरी थी, ताकि पहले से जानकारी हासिल कर संदिग्ध लोग सोना, प्रॉपर्टी या अन्य कोई एसेट खरीदकर अपने काले धन को ठिकाने न लगा लें. अधिया की निगरानी में रिसर्च टीम ने पूरी तरह से इसका सैद्धांतिक खाका तैयार किया. इस टीम में डेटा और फाइनेंशियल एनालिसिस के युवा एक्सपर्ट थे, तो कुछ ऐसे युवा भी जो मोदी के सोशल मीडिया एकाउंट और स्मार्टफोन ऐप का कामकाज संभालते हैं.

अगले साल यूपी में चुनाव होने वाले थे और ऐसे में कुछ बीजेपी नेताओं को डर था कि कहीं पार्टी को इसका नुकसान न उठाना पड़े, लेकिन नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा से कुछ वक्त पहले ही बुलाए गए कैबिनेट मीटिंग में कहा था, ‘मैंने पूरी तरह से रिसर्च कर लिया है, यह यदि विफल होता है तो दोष मुझे दीजिएगा.’

साल भर पहले से चल रही थी तैयारी

नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार का सबसे बड़ा वायदा काले धन को वापस लाने का था, इसलिए सरकार पर कुछ बड़ा कदम उठाने का दबाव था. एक साल पहले मोदी ने वित्त मंत्रालय, केंद्रीय बैंकों के अधि‍कारियों और कई थिंक टैंक से इस बात पर मंथन किया था कि काले धन पर कार्रवाई को कैसे आगे बढ़ाया जाए. इसमें मोदी ने इन सवालों पर जवाब मांगे थे कि देश में कितनी तेजी से नए नोट प्रिंट किए जा सकते हैं, उनका वितरण कैसे होता है, यदि सार्वजनिक बैंकों में काफी रकम जमा हो जाए तो उन्हें क्या फायदा होगा और नोटबंदी से किसे फायदा होगा?

हालांकि यह सारे सवाल अलग-अलग तरीके से पूछे गए थे ताकि कोई इस बात का अंदाजा न लगा पाए कि सरकार ऐसा करने की योजना बना रही है. असल में सरकार ने इस बारे में बेहद गोपनीयता इसलिए रखी कि अगर यह सूचना किसी भी तरह से लीक होती तो यह पूरी कवायद बेमतलब हो जाती.