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‘काश पुरुषों को मासिक धर्म होता’, SC ने एमपी हाईकोर्ट के महिला जज की बर्खास्तगी पर जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले पर सख्त टिप्पणी की है, जिसमें एक महिला जज को उनके प्रदर्शन के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया था, जबकि उनके गर्भपात के कारण उनके मानसिक और शारीरिक संकट को नजरअंदाज किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- काश पुरुषों को मासिक धर्म होता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने उच्च न्यायालय से यह स्पष्टता मांगी कि सिविल जजों की बर्खास्तगी के लिए क्या मानक हैं।

‘ऐसे मानक पुरुष जजों पर भी लागू होंगे’

सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसे मानक पुरुष जजों पर भी लागू होंगे। मुझे इसमें कोई हिचक नहीं है। महिला गर्भवती हुई थी और उसका गर्भपात हो गया। एक महिला जो गर्भपात से गुजरी है, उसका मानसिक और शारीरिक दर्द क्या है? काश पुरुषों को मासिक धर्म होता, तब उन्हें पता चलता कि यह क्या होता है।

मामले का सुप्रीम कोर्ट में स्वत: लिया संज्ञान

11 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था जब राज्य सरकार ने छह महिला सिविल जजों को कथित तौर पर असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर बर्खास्त कर दिया था। हालांकि, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की एक पूर्ण अदालत ने 1 अगस्त को अपनी पिछली बैठक के फैसले पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों को पुनर्नियुक्त करने का फैसला लिया, जिनमें ज्योति वर्कडे, सोनाक्षी जोशी, प्रिय शर्मा और रचना अतुलकर जोशी शामिल थीं। बाकी दो महिला जजों, अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को इसमें शामिल नहीं किया गया।

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