ब्रिटिश टापू के तट की ओर बढ़ रहा लगभग एक ट्रिलियन टन का आइसबर्ग, अगर टकराया तो…

एक आकलन के मुताबिक आइसबर्ग का वजन एक ट्रिलियन टन है और 200 मीटर गहरा है. इसकी वजह से इसका जमीन से टकराने का खतरा दूसरे विशाल आइसबर्ग की तुलना में कहीं ज्यादा है. यह आइसबर्ग तीन साल पहले अंटार्कटिक आइस शेल्फ से कटकर अलग हो गया था और 10 हजार से ज्यादा मील का सफर तय करने के बाद दक्षिण अटलांटिक में दक्षिण जॉर्जिया से 125 मील दूर पहुंचा है.

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के डॉ. एंड्रू फ्लेमिंग के मुताबिक अगले दो से तीन हफ्ते में इसे लेकर स्थिति साफ होगी कि यह तट से टकराएगा या ऐसे ही गुजर जाएगा. उन्होंने कहा अभी यह दक्षिण जॉर्जिया के आकार का है. वैज्ञानिकों का मानना था कि फरवरी में महासागर में बहने के बाद ए68ए हजारों छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट गया, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि वह अभी भी एक विशाल आकार में है. फ्लेमिंग का कहना है कि यह आइसबर्ग फिलहाल दुनिया में सबसे बड़ा है और इतिहास के पांच सबसे बड़े आइसबर्ग में से एक है. डॉ. फ्लेमिंग ने कहा है कि टूटने के बाद इसका एक-चौथाई हिस्सा टूटकर अलग हो गया है. डॉ. फ्लेमिंग ने यह भी बताया कि इससे टूटकर अलग होने वाले हिस्से भी छोटे-छोटे आइसबर्ग की तरह हैं. इनसे जहाजों को खतरा पैदा हो सकता है.

 

लगभग एक ट्रिलियन टन का एक आइसबर्ग ब्रिटिश टापू के तट की ओर बढ़ रहा है. इस बर्फीले पहाड़ की वजह से हजारों सील मछलियों, पेंग्विन और दूसरे वन्यजीवों पर खतरा मंडराने लगा है. जीववैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर ए68ए नाम का यह आइसबर्ग टापू से भिड़ गया, तो पर्यावरण को भयानक नुकसान हो सकता है और लाखों जानवरों के आवास नष्ट हो जाएंगे.

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के बायॉलजिस्ट प्रफेसर जेरायंट टार्लिंग ने चेतावनी दी है कि अगर यह टापू से टकरा गया तो इसके विनाशकारी नतीजे सामने आएंगे. आइसबर्ग से निकलने वाले ठंडे और फ्रेश पानी की वजह से खाद्य श्रृंखला के सबसे नीचे रहने वाले जीवों, जैसे काई और प्लैंकटन के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो जाएगा. प्रोफेसर टार्लिंग ने कहा इसका असर दूसरे जीवों पर पड़ेगा जो खाने के लिए इन जीवों पर निर्भर करते हैं. पेंग्विन और सील मछलियों जैसे जानवरों की आबादी खतरे में पड़ जाएगी. इनके प्रजनन का रास्ता भी बंद हो सकता है. दक्षिण जॉर्जिया में 4.5 लाख पेंग्विन जोड़े, 10 लाख पीले क्रेस्ट के मैकरोनी पेंग्विन और हजारों जेंटू और चिन्सट्रैप पेंग्विन रहते हैं. 20वीं शताब्दी के दौरान यहां वेल और सील मछलियां पकड़ी जाती थीं, लेकिन अब यहां दो ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे रिसर्च स्टेशन हैं. यहां इंसानों के नाम पर सिर्फ 30 वैज्ञानिक रहते हैं.