अकेले न्यूयॉर्क में ही विभिन्न स्कूलों में 10 लाख से ज्यादा बच्चे पढऩे जाते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चे फास्ट-फूड रेस्तरां के कितने करीब रहते हैं इसका प्रभाव भी उनके मोटे होने की आशंंका पर सीधा प्रभाव पड़ता है.
ब्रायन एल्बेल की प्रतिनिधित्व वाली शोध टीम ने पाया कि फास्ट-फूड आउटलेट के समीप रहने वाले 5 से 18 साल के बीच के 20 प्रतिशत बच्चे मोटे थे व 38 प्रतिशत बच्चे सामान्य से अधिक वजन वाले थे. जबकि इन स्टोर व दुकानों से दूर रहने वाले बच्चों में मोटापे के आंकड़े घटते चले गए. एल्बेल ने बोला कि शोध के निष्कर्षों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ‘खाद्य पर्यावरण की संभावित भूमिका’ का एक नया असर दिखाता है.
संस्था साल 2007 से न्यूयॉर्क के स्कूलों में पढऩे वाले विद्यार्थियों की ऊंचाई व वजन पर नजऱ रख रही है. एल्बेल व उनकी टीम ने फास्ट-फूड व जंक फूड बेचने वाले आउटलेट्स, कॉर्नर स्टोर्स, सिट-डाउन रेस्तरां व किराने की दुकानों से दूरी के साथ विद्यार्थियों के पतों की तुलना करने के लिए मैपिंग सॉफ्टवेयर व शहर के रेस्तरां निरीक्षण डेटा का उपयोग किया. शोधकर्ताओं ने निरीक्षण डेटा का उपयोग पिज्जा, चीनी व किसी अन्य प्रकार के ऑर्डर और टेक अवे सेवा वाले रेस्तरां को भी जांचा.
इसके आधार पर वे यह निष्कर्ष निकालने में सक्षम थे कि विद्यार्थियों के बॉडी, मास, इंडेक्स डेटा के अनुसार वे किस प्रकार के रेस्तरां के कितने करीब रहते थे. उन्होंने एक ही क्षेत्र के भिन्न-भिन्न विद्यार्थियों की परस्पर आपस में तुलना की.दरअसल बच्चों के घर, स्कूल या खेलने के पार्क के इर्द-गिर्द ऐसे आउटलेट्स होने से यह उनकी पहुंच में होते हैं. वहीं सुन्दर विज्ञापन, होर्डिंग्स व ढेरों ऑफर के कारण भी इनका सेवन करने वाले बच्चों में फैट की चर्बी बढ़ता है. एक वजह औनलाइन ऑर्डर व टेक अवे की सुविधा भी है.
अध्ययन में पाया गया कि घर से किराना दुकानों व सिट-डाउन रेस्तरां की दूरी के आधार पर मोटापे के जोखिम में कोई वृद्धि नहीं हुई है. एल्बेल ने बोला कि युवाओं को जोखिम में डालने के लिए कितनी सरलता से व जल्दी से वे जंक फूड का उपयोग कर सकते हैं.
उन्होंने बोला कि बच्चों के स्कूल से आने-जाने के दौरान फास्ट-फूड आउटलेट से गुजरने पर क्या होता है इसका पता लगाने के लिए यह शोध किया गया था. शोध में सामने आया कि 1970 के दशक से बच्चों में मोटापे की दर तीन गुना हो गई है. विशेषज्ञों का बोलना है कि इस दर में कमी लाकर हजारों बच्चों को मधुमेह, दिल रोग व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से बचाया जा सकता है.