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2012 के बंगलूरू आतंकी साजिश मामले में उम्रकैद काट रहे पाकिस्तानी समेत तीन दोषी बरी; अदालत का फैसला

बंगलूरू:  2012 के बंगलूरू आतंकी षड्यंत्र मामले में एक बड़ी जानकारी सामने आई है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया। बरी किए गए तीन आरोपियों में से एक पाकिस्तानी नागरिक भी है। सभी को निचली अदालत ने लश्कर से जुड़े 2012 के आतंकी षड्यंत्र मामले में दोषी पाया था। इन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद आरोपियों ने कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख अपनाया था।

कोर्ट ने मामले में सुनवाई की और बंगलूरू केंद्रीय कारागार के अंदर कथित तौर पर रची गई आतंकी साजिश से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि तीनों के खिलाफ आतंकी होने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

इन लोगों को पाया था दोषी
बंगलूरू के सैयद अब्दुल रहमान, कोलार जिले के चिंतामणि के अफसर पाशा उर्फ खुशीरुद्दीन और पाकिस्तान के कराची के मोहम्मद फहद खोया पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे।

इस आरोपी की सजा बरकरार
ट्रायल कोर्ट ने तीनों को यूएपीए और विस्फोटक अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने बंगलूरू के सैयद अब्दुल रहमान, चिक्काबल्लापुर के चिंतामणि के अफसर पाशा और कराची के मोहम्मद फहद खोया को बरी कर दिया। हालांकि, अदालत ने अवैध रूप से हथियार रखने के लिए शस्त्र अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत रहमान की 10 साल की सजा को बरकरार रखा।

समीक्षा समिति की रिपोर्ट पर विचार करना अनिवार्य: हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और जेएम खाजी की खंडपीठ ने पाशा और खोया द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और फैसला सुनाया। अदालत ने पाया कि अभियोजन के लिए दी गई मंजूरी में खामियां थीं। उस समय गृह विभाग के प्रधान सचिव राघवेंद्र एच. और दकर ने जिरह के दौरान स्वीकार किया कि उन्हें याद नहीं है कि जब उन्होंने मंजूरी दी थी तो उसमें कोई स्वतंत्र समीक्षा समिति शामिल थी या नहीं। पीठ ने कहा कि यूएपीए की धारा 45 (2) के तहत मंजूरी देने से पहले समीक्षा समिति की रिपोर्ट पर विचार करना अनिवार्य है।

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