ब्लैक फंगस की चपेट में आ रहे बच्चे , 3 बच्चों को गंवानी पड़ी आंख

फोर्टिस अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जेसल शेठ ने कहा कि हमने दूसरी लहर में ब्लैक फंगस से संक्रमित दो लड़कियों का इलाज किया। दोनों ही डायबिटिक थी।

हमारे पास (14 साल की) आने के बाद, उस लड़की की एक आंख 48 घंटों के भीतर काली पड़ गई। फंगस नाक तक फैल रहा था। अच्छी बात है कि यह दिमाग तक नहीं पहुंचा था। हमने छह सप्ताह तक उसका इलाज किया, लेकिन उसे अपनी एक आंख खोनी पड़ी।

डॉ शेठ ने बताया कि हमारे पास आई 16 साल की बच्ची पहले डायबेटिक नहीं थी लेकिन कोरोना से रिकवर हुई थी। लेकिन फिर वह डायबटीज की शिकायत लेकर हमारे पास आई। उसकी आंतों से खून बह रहा था। हमने एक एंजियोग्राफी की और पता चला है कि उसके पेट में ब्लैक फंगस है।

छोटे बच्चे, जो डायबेटिक नहीं थे, उन्हें मुंबई के केबीएच बचोआली नेत्र और ईएनटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और दोनों को कोविड था। उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस संक्रमण को जल्दी पकड़ने की जरूरत है क्योंकि यह आक्रामक है और मृत ऊतक को निकालना पड़ता है। दिमाग तक पहुंचने से रोकने के लिए सर्जनों को मरीजों की नाक, आंखें या यहां तक ​​​​कि कई मामलों में उनके जबड़े को भी हटाना पड़ा है।

चार, छह और 14 साल के तीन अलग-अलग बच्चों का दो अलग-अलग अस्पतालों में ऑपरेशन किया गया था। पहले दो बच्चों में डायबिटीज की शिकायत नहीं थी, लेकिन 14 साल के बच्चे में थी। डॉक्टरों ने बताया कि 16 साल का एक अन्य बच्चा डायबेटिक नहीं था लेकिन कोरोना से रिकवर होने के बाद उसके पेट का एक हिस्सा ब्लैक फंगस से संकर्मित हो गया।

देश में कोरोना महामारी का कहर तो जारी ही है लेकिन ब्लैक फंगस के मामले भी चिंता बढ़ा रहे हैं। मुंबई में ब्लैक फंगस के शिकार हुए तीन बच्चों की हालत इतनी बिगड़ गई कि उनकी आंख निकालनी पड़ी। तीनों ही बच्चे कोरोना से ठीक हो चुके थे, लेकिन बाद में वह ब्लैक फंगस का शिकार हो गए।