BJP का आरोप, इस ब्रिज के लिए प्रचार में नीदरलैंड के एक पुल की फोटो का प्रयोग कर रहे केजरीवाल

लगभग 14 वर्ष के इंतजार के बाद उत्तरी दिल्ली को उत्तरीपूर्वी  उत्तर पश्चिमी दिल्ली से जोड़ने वाला सिग्नेचर ब्रिज बनकर तैयार हो चुका है. आज रविवार शाम चार बजे दिल्ली के CMअरविंद केजरीवाल इसे जनता को समर्पित करने वाले हैं. लेकिन इस पुल के उद्घाटन से पहले ही टकराव खड़ा हो गया है. बीजेपी का आरोप है कि इस ब्रिज के लिए प्रचार में नीदरलैंड के एक पुल की फोटो का प्रयोग किया गया है. ब्रिज के उद्घाटन समारोह के लिए सोशल मीडिया  खबर पत्रों में एक फोटो को लेकर उठा यह टकराव चर्चा का विषय बन गया है.
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दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने अमर उजाला को बताया कि सिग्नेचर ब्रिज के प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल गवर्नमेंट जिस फोटो का प्रयोग कर रही है, वह सिग्नेचर ब्रिज का न होकर नीदरलैंड के इरास्मस ब्रिज का है. अगर उन्होंने ब्रिज बनाने के लिए कोई कार्य किया होता तो उन्हें इस तरह एक फोटो के लिए चोरी करने की आवश्यकतानहीं पडती. इसे उन्होंने फोटो चोरी घोटाला बताते हुए बोला कि यह केजरीवाल गवर्नमेंट की फितरत में है,  वे दूसरों के द्वारा किये गए कार्य का झूठा श्रेय लेने की प्रयास कर रहे हैं.

इस ब्रिज के उद्घाटन मौका पर दिल्ली बीजेपी के नेताओं को न बुलाये जाने पर भी टकराव खड़ा हो गया है. इस एरिया के बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने बोला है कि वे इस पुल के उद्घाटन मौका पर अपने हजारों समर्थकों के साथ ब्रिज पर उपलब्ध रहेंगे. दिल्ली बीजेपी नेता नीलकांत बख्शी ने बोला कि जब इस पुल को बनाये जाने के लिए पैसे की कमी पड़ने लगी तब सांसद मनोज तिवारी ने अपने प्रयासों से केंद्र गवर्नमेंट से 33 करोड़ रूपये का फंड दिलवाया था.

ऐसे में इसी एरिया के सांसद को पुल के उद्घाटन मौका पर इसी एरिया के सांसद को न बुलाया जाना हास्यास्पद है. हालांकि टकराव बढ़ता देख दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक ट्वीट के जरिये इस प्रोग्राम में सबको आने के लिए निमंत्रित किया है. औपचारिक निमंत्रण न भेजना अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है. इसके पूर्व दिल्ली के आईटीओ पर एक ओवर ब्रिज के निर्माण के समय बीजेपी नेताओं के द्वारा अरविंद केजरीवाल को न बुलाया जाना भी चर्चा का विषय बन गया था.

इस ब्रिज का प्रोजेक्ट 2004 में तैयार हुआ था. योजना के मुताबिक इसे 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के पहले तैयार हो जाना था. इसकी शुरूआती लागत 464 करोड़ रूपये थी. तय समय पर पूरा न होने के बीच बार-बार इसकी समय सीमा बढ़ाई गई. इसकी लागत भी 464 करोड़ से बढ़कर हजारों करोड़ में हो गई. अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी दिल्ली  केंद्र गवर्नमेंट के बीच लगातार टकराव चलता रहा.