किसी भी कार्य की आरंभ में थोड़ी सी असफलता हमें विचलित कर सकती है परंतु हमे…

8 अक्टूबर को आश्विन मास के शुक्ल की पक्ष की दशमी तिथि यानी दशहरा है. त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीराम ने रावण का संहार किया था. रामायण में सीता हरण के बाद हनुमानजी सीता की खोज के लिए लंका गए थे. ये प्रसंग सुंदरकांड में बताया गया है. ये बहुत ही प्रेरक प्रसंग है. हनुमानजी लंका में सीता को खोज रहे हैं. रावण सहित सभी लंकावासियों के भवनों, अन्य राजकीय भवनों  लंका की गलियों, रास्तों पर सीता को खोज लेने के बाद भी जब हनुमान को कोई सफलता नहीं मिली तो वे थोड़े निराश हो गए थे.

  • हनुमानजी ने कभी देखा नहीं था सीता को

हनुमान ने सीता को कभी देखा नहीं था, लेकिन वे सीता के गुणों को जानते थे. वैसे गुण वाली कोई स्त्री उन्हें लंका में नहीं दिखाई दी. अपनी इस असफलता पर वे कई तरह की बातें सोचने लगे. उनके मन में विचार आया कि अगर खाली हाथ लौट जाऊंगा तो वानरों के प्राण तो संकट में पड़ेंगे, प्रभु श्रीराम भी सीता के वियोग में प्राण त्याग देंगे, उनके साथ लक्ष्मण  भरत भी. बिना अपने स्वामियों के अयोध्यावासी भी जी नहीं पाएंगे. बहुत से प्राणियों के प्राणों पर संकट आ जाएगा. मुझे एक बार फिर से सीता की खोज प्रारम्भ करनी चाहिए.
ये विचार मन में आते ही हनुमान फिर ऊर्जा से भर गए. उन्होंने अब तक कि अपनी लंका यात्रा की मन ही मन समीक्षा की  फिर नयी योजना के साथ खोज प्रारम्भ की. हनुमान ने सोचा अभी तक ऐसे स्थानों पर सीता को ढूंढ़ा है, जहां राक्षस निवास करते हैं. अब ऐसी स्थान खोजना चाहिए जो वीरान हो या जहां आम राक्षसों का प्रवेश वर्जित हो. ऐसा सोचते ही उन्होंने सारे राजकीय उद्यानों  राजमहल के आसपास सीता की खोज प्रारम्भ कर दी. अंत में सफलता मिली  हनुमान ने सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया. हनुमान के एक विचार ने उनकी असफलता को सफलता में बदल दिया.

  • प्रसंग की सीख

इस प्रसंग की सीख यह है कि किसी भी कार्य की आरंभ में थोड़ी सी असफलता हमें विचलित कर देती है. हम शुरुआती पराजय को ही स्थाई मानकर बैठ जाते हैं. फिर से प्रयास ना करने की आदत न सिर्फ अशांति पैदा करती है बल्कि हमारी प्रतिभा को भी समाप्त करती है.