राममंदिर निर्माण के मामले को इस मुकाम तक पहुंचाने में संघ का बड़ा योगदान

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने अयोध्‍या (Ayodhya) में राममंदिर (Ram Mandir) बनाने का आदेश दे दिया है. फैसले के बाद राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि अब हम मिल-जुलकर राममंदिर बनाएंगे. उन्‍होंने अपील की समाज का हर वर्ग राममंदिर निर्माण में अपना कर्तव्‍य निभाए. राममंदिर निर्माण के मामले को इस मुकाम तक पहुंचाने में संघ का बड़ा योगदान रहा है. आरएसएस पर करीबी नजर रखने वाले लेखक श्रीधर दामले (Shridhar Damle) बताते हैं कि संघ ने गोकशी पर रोक (Cow Slaughter Ban) और स्‍वदेशी के मामले पर आम लोगों की अच्‍छी प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद कैसे राममंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ाया.

श्रीधर दामले ने बताया कि 40 और 50 के दशक की शुरुआत में संघ के नेताओं को राममंदिर का मुद्दा स्‍थानीय मसला लगता था. यहां तक कि संघ इसे पूरे उत्‍तर प्रदेश (UP) में उठाए जाने लायक मुद्दा भी नहीं मानता था. उस दौरान आरएसएस गोकशी पर रोक और स्‍वदेशी के मुद्दे को जन आंदोलन बनाने की कोशिशों में जुटा था. अमेरिकी विद्वान वाल्‍टर एंडरसन (Walter Anderson) के साथ मिलकर किताब ‘आरएसएस: ए व्‍यू टू द इनसाइड’ लिखने वाले दामले ने News18 को बताया कि कैसे राममंदिर का मुद्दा संघ के केंद्र में आया. उनके मुताबिक, अयोध्‍या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मथुरा (Mathura) और काशी (Kashi) पर ध्‍यान देने के बजाय संघ राममंदिर के लिए चंदा (Donation) जुटाकर ग्रामीण भारत (Rural India) में अपनी पहुंच बढ़ाने पर जोर देगा.

संघ ने गोकशी पर रोक के लिए जुटा लिए थे 1.75 करोड़ हस्‍ताक्षर दामले ने बताया कि 40 और 50 के दशक में संघ ने गोकशी पर प्रतिबंध के लिए पूरे देश में घूम-घूमकर हस्‍ताक्षर अभियान चलाया. संघ ने पहली बार चलाए इस तरह के अभियान में 1.75 करोड़ लोगों के हस्‍ताक्षर जुटा लिए थे. इस दौरान बड़ी संख्‍या में लोग संघ के साथ जुड़े. इनमें बहुत से हिंदू धार्मिक नेता (Hindu Religious Leaders) और रजवाड़े (Princely States) भी शामिल थे. संघ के दूसरे प्रमुख एमएस गोलवलकर (MS Golwalkar) ने 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले गोकशी पर रोक के मुद्दे को लेकर अपने कार्यकर्ताओं को फिर सक्रिय किया. हालांकि, इस मुद्दे को गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ और रामराज्‍य परिषद के संस्‍थापक करपात्री महाराज जैसे महात्‍वाकांक्षी नेताओं ने झटक लिया.

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और उत्‍तर प्रदेश सरकार में कई बार कैबिनेट मंत्री रहे दाउ दयाल खन्‍ना (Dau Dayal Khanna) ने विश्‍व हिंदू परिषद (VHP) के मंच से 1983 में कहा था कि मथुरा, काशी और अयोध्‍या में मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों को हटाना होगा. उन्‍होंने अंतरिम प्रधानमंत्री व कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता गुलजारीलाल नंदा (Gulzari Lal Nanda) और तब सरसंघचालक बनने जा रहे राजेंद्र सिंह उर्फ रज्‍जू भइय्या (Rajju Bhaiyya) के साथ बैठक में अपनी बात को दोहराया. इसके बाद संघ प्रचारकों ने राममंदिर मुद्दे पर उत्‍तर प्रदेश और राजस्‍थान (Rajasthan) में एक के बाद एक कई बैठकें कीं. इसके बाद इस मामले को तत्‍कालीन संघ प्रमुख बाला साहेब देवड़ा (Balasaheb Deora) के सामने रखा गया. इस पर देवड़ा ने कहा, ‘क्‍या! अभी तक राममंदिर पर ताले (Locks) लगे हुए हैं.’

देवड़ा का ये बयान संघ प्रचारकों के लिए बाबरी मस्जिद (Babari Masjid) के खिलाफ लंबा अभियान चलाने का संकेत जैसा था. बताया जाता है कि तब देवड़ा ने प्रचारकों से कहा था, ‘आपको राममंदिर के मुद्दे पर प्रदर्शन तभी शुरू करना चाहिए, जब आप इस लड़ाई को अगले तीन दशक (Three Decades) तक लड़ने के लिए तैयार हों. ये आपके धैर्य की परीक्षा की लड़ाई होगी. जो इस लड़ाई में पूरे धैर्य के साथ अंत तक लड़ता रहेगा, जीत उसी की होगी.’ इसके बाद संघ ने गोकशी के खिलाफ चलाए हस्‍ताक्षर अभियान की तर्ज पर एकसाथ पूरे देश में आंदोलन छेड़ने की योजना बनाई. संघ के नेता मोरोपंत पिंगले (Moropant Pingle) के विचार के मुताबिक, विश्‍व हिंदू परिषद ने एकतमाता यात्रा (Ekatmata Yatra) का आयोजन किया.

स्‍वयंसेवकों ने चार देशव्‍यापी यात्राओं के दौरान राममंदिर निर्माण चंदा के लिए गंगाजल की बोतलें (Gangajal Bottels) बेचने की योजना बनाई. जब योजना पर अमल किया गया तो सारी बोतलें उत्‍तर प्रदेश में ही बिक गईं. इससे संघ के कुछ नेता चौंक गए. उन्‍हें अहसास हुआ कि राममंदिर का मुद्दा आम जनता (Common People) का मसला है. इस अभियान में संघ ने करीब 8 करोड़ रुपये जुटाए. लेकिन, संघ के मुताबिक, इस अभियान के दौरान उन्‍होंने धन से ज्‍यादा जन समर्थन जुटाया. धीरे-धीरे संघ को अहसास हुआ कि राम जन्‍मभूमि (Ram Janmbhoomi) का मुद्दा किसी भी दूसरे मामले से बहुत बड़ा है.

संघ ने 1984 में तालों में बंद रामलला के बड़े-बड़े बैनर 40 ट्रकों पर लगाए और उन्‍हें पूरे उत्‍तर प्रदेश में घुमाया गया. मोरोपंत पिंगले ने राममंदिर के लिए राम शिलापूजन (Shila Poojan) का आयोजन कराया. इस पूजन का आयोजन देश के तीन लाख से ज्‍यादा गांवों और कस्‍बों में किया गया. बीजेपी ने 1989 में पालनपुर संकल्‍प (Palanpur Resolution) में इस मामले को औपचारिक तौर पर अपने एजेंडे में शामिल किया. जब उनसे पूछा गया कि संघ का अगला मुद्दा क्‍या हो सकता है तो उन्‍होंने कहा कि अब आरएसएस ग्रामीण भारत में पकड़ मजबूत करने पर ध्‍यान देगा. इसका एक तरीका हो सकता है कि संघ भव्‍य राम मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव जाकर चंदा जुटाए ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों के संपर्क में आ सके. संघ मथुरा और काशी के मामलों को भी नहीं छुएगा. अगले तीन से चार साल संघ सिर्फ राममंदिर निर्माण पर जोर देगा.

दामले से पूछा गया कि क्‍या मोहन भागवत का कद उनसे पहले के सरसंघचालकों से बड़ा हो गया है तो उन्‍होंने कहा कि आरएसएस किसी को हीरो नहीं बनाता. रज्‍जू भइय्या और के. सुदर्शन से मोहन भागवत की तुलना करना उचित नहीं है. संघ दीन दयाल उपाध्‍याय, एमएस गोलवलकर और दत्‍तोपंत ठेंगड़ी को सबसे ऊपर रखता है. इसके अलावा संघ बाला साहेब देवड़ा, भाउराव देवड़ा, नानाजी देशमुख और मोरोपंत के योगदान को हाइलाइट कर रहा है. दरअसल, बाला साहेब देवड़ा ने तीन ऐसे नियम बनाए थे, जिससे किसी भी सरसंघचालक का कद विराट न हो जाए. उन्‍होंने नियम बनाया कि सरसंघचालक 75 साल कीउम्र में सेवानिवृत्‍त हो जाएगा. उनका अंतिम संस्‍कार सामान्‍य व्‍यक्ति की ही तरह होगा और गोलवलकर व हेडगेवार के अलावा किसी भी संघ नेता की तस्‍वीर आरएसएस के कार्यक्रमों में नहीं लगाई जाएगी.