अयोध्‍या मुद्दे पर न्यायालय का बड़ा फैसला, खुलवाया राममंदिर का ताला?

देश के सबसे पुराने  बड़े टकराव के रूप में देखे जाने वाले अयोध्‍या केस (Ayodhya Case) का निर्णय थोड़ी देर में आने वाला है

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्‍व में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ऐतिहासिक निर्णय देगी दरअसल, यह देश का सबसे पुराना मुद्दा है  इस मुद्दे में 40 दिनों तक नियमित सुनवाई हुई थी यह उच्चतम न्यायालय के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई थी सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी

हिंदू पक्ष की दलीलें:

– मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई
हिंदू पक्ष ने नक्शों, तस्वीरों  पुरातात्विक सबूतों के जरिये ये साबित करने की प्रयास की थी कि विवादित ढांचा बनने से पहले वहां भव्य मन्दिर था मन्दिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था न्यायालय में पेश किए फोटोग्राफ के जरिये बोला गया था कि विवादित इमारत हिंदू मंदिर के 14 खंभों पर बनी थी इन खंभों में तांडव मुद्रा में शिव, हनुमान कमल  शेरों के साथ बैठे गरुड़ की आकृतियां हैं

– विवादित स्थान पर दो हज़ार वर्ष पहले भी मन्दिर

हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि विवादित जगह पर आज से 2 हज़ार वर्ष पहले भी भव्य राम मंदिर था मंदिर के ढांचे के ऊपर ही विवादित इमारत को बनाया गया था प्राचीन मंदिर के खंभों  दूसरी सामग्री का प्रयोग भी विवादित ढांचे के निर्माण में किया गया

– श्रीराम जन्मस्थान को लेकर अटूट आस्था

हिंदू पक्ष की ओर से बोला गया था कि जिस स्थान का यहां मुकदमा चल रहा है करोड़ों लोगों की आस्था है कि वही भगवान राम का जन्म जगह है सैकड़ों वर्ष से यहां पूजा-परिक्रमा की परंपरा रही है करोड़ों लोगों की इस आस्था को पहचानना  उसे मान्यता देना न्यायालय की जबाबदेही है

– रामलला की मूर्ति रखे जाने से बहुत पहले से श्रीराम की पूजा

विवादित ढांचे के मूर्ति रखे जाने बहुत पहले से ही राम की पूजा होती रही है किसी स्थान को मंदिर के तौर पर मानने के लिए वहां मूर्ति होना ज़रूरी नहीं है हिन्दू महज किसी एक रूप में भगवान की आराधना नहीं करते केदारनाथ मंदिर में शिला की पूजा होती है पहाड़ों की भी देवरूप में पूजा होती है चित्रकूट में होने वाली परिक्रमा का उदाहरण दिया गया था

– इस्लामिक सिद्धान्तों के मुताबिक भी विवादित ढांचा वैध मस्जिद नहीं

हिंदू पक्ष ने इस्लामिक नियमों का हवाला देकर ये साबित करने की प्रयास की थी कि विवादित ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती बोला गया था कि किसी धार्मिक जगह के ऊपर जबरन बनाई गई इमारत शरीयत के हिसाब से भी मस्ज़िद नहीं मानी जा सकती उस इमारत में मस्ज़िद के लिए ज़रूरी तत्व भी नहीं थे इस्लामिक विद्वान इमाम अबु हनीफा का बोलना था कि अगर किसी स्थान पर दिन में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ने के अज़ान नहीं होती तो वो स्थान मस्ज़िद नहीं हो सकती विवादित इमारत में 70 वर्ष से नमाज नहीं पढ़ी गई है उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी