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रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर डालेगी ट्रंप की जीत, पश्चिम एशिया और चीन के साथ कैसे होंगे रिश्ते

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत का असर अब इस देश की विदेश नीति पर दिखने की भी संभावना है। खासकर जनवरी 2025 से, जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद की शपथ ले लेंगे। इस बीच कई हलकों में चर्चा है कि आखिर रूस-यूक्रेन युद्ध को रुकवाने का दावा करने वाले ट्रंप अब राष्ट्रपति बनने के बाद क्या करेंगे। इसके अलावा इस्राइल-हमास और इस्राइल-हिजबुल्ला संघर्ष रोकने में उनकी क्या भूमिका होगी। लोगों के मन में यह भी सवाल हैं कि चीन के लिए ट्रंप का क्या रुख होगा।

1. रूस-यूक्रेन युद्ध पर
माना जा रहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रुकवाने के वादे पर टिके रहेंगे। वह इसके लिए दोनों देशों को उन्हीं जगहों पर रुकने का प्रस्ताव दे सकते हैं, जहां उनकी सेनाएं अभी मौजूद हैं। हालांकि, ट्रंप की इस कोशिश से रूस को यूक्रेन के क्षेत्र में कब्जा करने में मदद मिलेगी, क्योंकि रूसी सेना फरवरी 2022 में हमले के बाद से अब तक यूक्रेन का काफी इलाका घेर चुकी है। इतना ही नहीं ट्रंप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की उस मांग को भी मान सकते हैं, जिससे यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नही मिलेगी।

2. पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष पर
दूसरी तरफ पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष को लेकर ट्रंप का रुख रूस-यूक्रेन संघर्ष के मुकाबले पूरी तरह अलग रह सकता है। ट्रंप इस्राइल और सऊदी अरब के कट्टर समर्थक रहे हैं। ऐसे में ईरान के मामले में उनका रुख और भी कड़ा हो सकता है।

इसके लिए वह इस्राइल की हमास और हिजबुल्ला के खिलाफ जंग का भी समर्थन कर सकते हैं। दरअसल, हमास और हिजबुल्ला दोनों को ही ईरान का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन जारी रहा है। इसके अलावा यमन में हूती भी ईरानी समर्थन से काफी बढ़े हैं। ऐसे में ट्रंप पश्चिम एशिया में ईरान समर्थित संगठनों के खिलाफ संघर्ष का समर्थन कर सकते हैं।

इतना ही नहीं इस्राइल का समर्थन ट्रंप को रूस के खिलाफ भी अहम बढ़त दिला सकता है। दरअसल, यूक्रेन के खिलाफ जंग में रूस को बड़े स्तर पर ईरानी हथियारों पर निर्भर होना पड़ रहा है। ऐसे में इस्राइल को मजबूत करने से ईरान कमजोर पड़ेगा और इसका असर रूस की हथियारों की आपूर्ति पर भी पड़ेगा। ऐसे में ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध में भी इस्राइल के युद्ध को रुकवाने का इस्तेमाल कर सकते हैं।

जहां यूक्रेन और पश्चिम एशिया में स्थितियों को लेकर अब अमेरिकी नीति में बदलाव होगा, वहीं चीन के मुद्दे पर ट्रंप अपनी पुरानी नीति ही अपना सकते हैं। इससे पहले बाइडन सरकार ने भी ट्रंप के पहले कार्यकाल की नीतियों के जरिए चीन के मुद्दे को संभाला। यानी चीन के मामले में अमेरिकी रुख में बदलाव मुश्किल है। इतना ही नहीं चीन के मामले में आगे और सख्त हो सकते हैं और अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए चीन पर आयात शुल्क बढ़ा सकते हैं।

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