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क्या बाइडेन से ज्यादा बेहतर साबित हो सकते हैं अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप?

अमेरिका में अब हम लोकतंत्र का एक विकृत संस्करण देख सकते हैं। इसमें डोनाल्ड ट्रंप एक सख़्त अधिनायक के रूप में विश्व मंच पर अवतरित होने के लिए तैयार हैं। अपने बयानों और टिप्पणियों से ट्रंप यह सिद्ध कर चुके हैं कि उनके भीतर एक शातिर तानाशाह मौजूद है। इसलिए वह खुले आम कहते हैं कि मेक्सिको सीमा बंद करने के मामले में वे तानाशाह हो जाएंगे। वे प्रचार अभियान में कह चुके हैं कि 2020 में हारने के बाद उन्हें व्हाइट हाउस खाली नहीं करना चाहिए था। यानी पराजय के बाद वे जो बाइडेन की जीत को खारिज कर रहे थे। इस तरह का बयान कोई सामंती प्रवृति वाला इंसान ही दे सकता है।

यह प्रमाणित तथ्य है कि पिछले कार्यकाल में उन्होंने 21500 से अधिक झूठ बोले थे। अर्थात 21 झूठ प्रतिदिन। किसी भी सभ्य लोकतंत्र में सामूहिक नेतृत्व, सचाई और ईमानदारी सबसे ज़रूरी तत्व होते हैं और डोनाल्ड ट्रंप में इन तीनों का अभाव है। इसीलिए संसार के सबसे अमीर लोकतंत्र की जड़ें सूखते हम बीते आठ बरस से देख रहे हैं। बराक ओबामा का कार्यकाल लोकतांत्रिक नजरिए से अमेरिका का अंतिम माना जा सकता है।

कई सारे सवाल
सवाल यह है कि दुनिया की चौधराहट की कमान डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में आने के बाद वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ? भारत जैसे एशिया के ताकतवर मुल्क के प्रति उनका रवैया कैसा रहेगा? रूस से दोस्ती तथा चीन से चिढ़ जारी रहेगी? क्या यूरोप के देश अगले चार बरस भी अमेरिका के पिछलग्गू बने रहेंगे ?

इन प्रश्नों का उत्तर यक़ीनन भविष्य के गर्भ में है।लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के पिछले कार्यकाल को ध्यान में रखते हुए कोई विश्लेषण करें तो कहा जा सकता है कि यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने रवैए में आमूल चूल बदलाव नहीं किया तो विश्व पंचायत के इस मुखिया की प्रधानी ख़तरे में है। अमेरिका तमाम राष्ट्रों को आर्थिक मदद या फौजी ताक़त के बल पर ही संसार पर अपना रौब बनाए हुए है। ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति इसमें बड़ी बाधा बन सकती है। चौधराहट तो पैसे से ख़रीदी जाती है।

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