विमान क्रैश में मारे गए IAF कर्मियों के 56 साल बाद मिले अवशेष, सेना ने बरामद किए 4 शव
जम्मू: भारतीय सेना को खोज और बचाव अभियान में एक बड़ी सफलता हासिल हुई है। सेना की एक टीम ने 1968 में रोहतांग दर्रे पर दुर्घटनाग्रस्त हुए भारतीय वायु सेना (आईएएफ) एएन-12 विमान के कर्मियों के अवशेषों को बरामद किया है। सेना को ये शव 56 साल पर मिले हैं। इसे एक असाधारण घटनाक्रम माना जा रहा है।
सेना के अधिकारियों ने बताया कि ये अवशेष भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स और तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू के कर्मियों की एक संयुक्त टीम ने बरामद किए। चार में तीन पीड़ितों की पहचान हो गई है, जिसमें मलखान सिंह, सिपाही नारायण सिंह और थॉमस चरण शामिल हैं। इनमें से सिपाही नारायण सिंह उत्तराखंड की चमोली तहसील के कोलपाड़ी गांव के रहने वाले थे। तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू के प्रतिनिधियों के सहयोग से भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स के नेतृत्व में यह मिशन बड़े चंद्र भागा माउंटेन पर चलाया जा रहा था।
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने मलबे की खोज की। जिसके बाद भारतीय सेना, विशेष रूप से डोगरा स्काउट्स द्वारा हाल के वर्षों में कई अभियान चलाए गए थे। डोगरा स्काउट्स ने 2005, 2006, 2013 और 2019 में खोजी अभियान चलाए थे।
अधिकारियों ने बताया कि, दुर्घटना स्थल की खतरनाक परिस्थितियों और कठोर इलाके को देखते हुए 2019 तक पीड़ितों के केवल पांच शव बरामद किए गए थे। उन्होंने कहा कि अब चंद्र भागा पर्वत अभियान में चार और शव बरामद हुए हैं। जिससे मृतकों के परिवारों के बीच नई उम्मीद जगी है।
चरण केरल के पथानामथिट्टा जिले के एलंथूर का रहने वाले थे। उन्होंने बताया कि उसके परिजनों को शव बरामद होने की सूचना दे दी गई है। आधिकारिक रिकॉर्ड से प्राप्त दस्तावेजों की मदद से मलखान सिंह की पहचान की गई। आधिकारिक दस्तावेजों के जरिए सिपाही सिंह की पहचान की गई। जो आर्मी मेडिकल कोर में काम करते थे। अधिकारियों ने बताया कि सिंह उत्तराखंड के गढ़वाल में चमोली तहसील के कोलपाडी गांव का रहने वाले थे।
102 लोगों को ले जा रहा विमान हो गया था क्रैश
गौरतलब है कि 102 लोगों को ले जा रहा यह ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप परिवहन विमान 7 फरवरी, 1968 को चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरते समय लापता हो गया था। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान के पर्वतारोहियों ने मलबे की खोज की, जिसके बाद से भारतीय सेना कई अभियान चला चुकी है। इसमें 2019 तक केवल पांच पीड़ितों के पार्थिव अवशेष बरामद किए गए थे।