प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हो रही कैबिनेट बैठक, किसान आंदोलन पर आई ये बड़ी खबर

सरकार किसानों के आंदोलन के आगे झुकती नजर आ रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार किसानों को भेजे जाने वाले प्रस्ताव में एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार हो गई है. विवाद के निपटारे के लिए भी एसडीएम के अलावा कोर्ट जाने की इजाजत भी लिखित में देने को तैयार है.

इसके साथ ही एपीएमसी क़ानून के तहत आने वाली मंडियों को और सशक्त करने पर सरकार तैयार है. किसान चाहते हैं कि जिन व्यापारियों को प्राइवेट मंडियों में व्यापार करने की इजाज़त मिले उनका रजिस्ट्रेशन होना चाहिए. जबकि क़ानून में केवल पैन कार्ड होना अनिवार्य बनाया गया है. सरकार किसानों की यह मांग भी मांगने को तैयार नजर आ रही है. इसके अलावा प्राइवेट मंडियों में भी कुछ शुल्क लगाने पर विचार हो सकता है.

इसके अलावा सरकार पराली जलाने को लेकर हाल ही में लाए गए अध्यादेश में कुछ बदलाव कर सकती है या वापस लेने पर भी विचार कर सकती है. किसानों की एक मांग प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल को नहीं लाने की भी है. सरकार उसपर और संवाद का प्रस्ताव रख सकती है.

सरकार के प्रस्ताव के बाद आगे की रणनीति बताएंगे किसान
सरकार की ओर से लिखित प्रस्तताव मिलने के बाद दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं की बैठक होगी. किसान नेता हनन मुल्ला ने कहा है कि कृषि कानूनों को निरस्त करना होगा और बीच का कोई रास्ता नहीं है. भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा- केंद्र की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे. आज होने वाली छठे दौर की वार्ता रद्द हो गई है. ड्राफ्ट पर चर्चा होगी और आगे फैसला तय किया जाएगा. हमें उम्मीद है कि शाम चार पांच बजे तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.

अमित शाह से रात में बैठक, कोई हल नहीं निकला
मंगलवार देर रात 13 किसान नेताओं की गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात बेनतीजा रही. अचानक हुई बैठक में किसी हल की उम्मीद की जा रही थी. लेकिन किसान नेता अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. वहीं दूसरी ओर सरकार ने भी अपनी मंशा साफ कर दी है कि कानून वापस नहीं होंगे. सरकार किसानों की मांग को देखते हुए कानून में संशोधन करने को तैयार हैय

किसानों के प्रदर्शन का 14वां दिन
राजधानी दिल्ली में हजारों की संख्या में हरियाणा-पंजाब और देश के अन्य राज्यों से आए किसानों का आज 14वां दिन हैं. सरकार और किसानों के बीच अब कुल छह दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन इन बैठकों में दोनों पक्षों के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. दिल्ली के अलग अलग बॉर्डर पर हजारों की संख्या में किसान डटे हुए हैं. हालांकि, सरकार की तरफ से लगातार आंदोलन को खत्म करने कोशिश की जा रही है लेकिन किसान संगठन अपनी जिद पर अड़े हुए है कि सरकार इन तीनों ही कानूनों को वापस ले.

क्या है विरोध
गौरतलब है कि सितंबर महीने में मॉनसून सत्र के दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से पास कराए गए तीन नए कानून- 1. मूल्य उत्पादन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020, 2. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 और 3. किसानों के उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 का किसानों की तरफ से विरोध किया जा रहा है. किसानों को डर है कि इससे एमसीपी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और सरकार उन्हें प्राइवेट कॉर्पोरेट के आगे छोड़ देगाी. हालांकि, सरकार की तरफ से लगातार ये कहा जा रहा है कि देश में मंडी व्यवस्था बनी रहेगी. लेकिन, किसान अपनी जिद पर अड़े हुए हैं.