सुप्रीम न्यायालय ने पटाखों की औनलाइन बिक्री पर फिल्हाल रोक लगा दी है. इसका सबसे बड़ा नुकसान दक्षिण हिंदुस्तान की कंपनियों को हुआ है, क्योंकि वहीं से पूरे राष्ट्र में इस तरह की बिक्री की जाती है. तमिलनाडु का शिवकासी व कर्नाटक के बंगलूरू से पूरे राष्ट्र में औनलाइन पटाखों की सेल की जाती है.
तमिलनाडु के शिवकासी में स्थित कैलासवरी फायर वर्क्स की वेबसाइट पर पटाखों की सबसे ज्यादा औनलाइन बिक्री होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये ही कंपनी कॉकब्रांड नाम से पटाखों का निर्माण और बेचती है. कैलासवरी ने अपनी वेबसाइट पर सुप्रीम न्यायालय का निर्णय आने के बाद औनलाइन बिक्री को बंद कर दिया है.
इसी तरह अन्य कंपनियां भी यह कदम उठा रही हैं. हालांकि इसके अतिरिक्त अन्य कंपनियां भी हैं, जो राष्ट्र के अन्य इलाकों में स्थित हैं. शिवकासी के बाद बंगलूरू दूसरा सबसे बड़ा हब है.
4 प्रतिशत औनलाइन बिक्री
औनलाइन पटाखा विक्रेता आलोक अरोड़ा ने अमरउजाला। कॉम को बताया कि राष्ट्र भर में केवल 4 प्रतिशत पटाखों की बिक्री औनलाइन होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि पेमेंट लेने वपटाखों की डिलिवरी करना बड़ा जोखिम का काम होता है.
बैंक किसी को भी पेमेंट गेटवे देता नहीं है व आप बिना लाइसेंस के पटाखों को अन्य उत्पादों की तरह घर पर डिलिवर नहीं कर सकते हैं. एक आम ग्राहक पटाखे की दुकान पर जाकर ही इनको खरीदता है.
ई-पटाखों का भी मार्केट
लालकिला स्थित भागीरथ पैलेस
बाजार में दीपावाली के मद्देनजर
नयी तकनीक से तैयार ई-पटाखों की बिक्री तेजी से हो रही है
. इस
बाजार में ई-पटाखा खरीद रहे वरुण शर्मा ने बताया कि ई-पटाखे
बहुत ज्यादा खास हैं
. उन्होंने बताया कि इनके
इस्तेमाल से न तो आग लगने का खतरा होता है
व न ही बच्चों द्वारा चलाने पर कोई खतरा होने की
आसार है
.
सबसे खास बात यह है कि इन पटाखों के इस्तेमाल से प्रदूषण भी नहीं फैलता. हालांकि ई-पटाखे दिखने में बारूद वाले पटाखों की लड़ी जैसे ही दिखते हैं, लेकिन फटते नहीं. लेकिन सबसे बड़े त्योहार पर इन पटाखों की खरीदारी से उनके बजट पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
क्या हैं ई-पटाखे
ई-पटाखे यानि प्रदूषण रहित ऐसे पटाखे जिनका इस्तेमाल बिजली के जरिये होता है. इन पटाखों की अच्छाई यह है कि इन्हें एक माचिस बॉक्स से थोड़े से बड़े आकार के वायरलैस रिमोट कंट्रोल से चलाया जाता है. इन पटाखों के चलाने के लिए किसी तरह की दूरी बनाने की जरूरत नहीं होती. इनका आकार दिखने में एक सूतली में बंधे बारूद वाले मोटे बम की लड़ियों जैसा है, जो दिखने के स्काईशॉट जैसे भी हैं.
ई-पटाखों में तेज आवाज करने वाले स्पीकर लगे हैं, जिनमें बिजली के छोटे सर्किट डिवाइस के प्रचालन से धमाके की आवाज पैदा होती है. इनके इस्तेमाल से किसी तरह की चिंगारी या आग नहीं लगती.
महंगे फिर भी मार्केट में मांग तेज
भागीरथ पैलेस बाजार में ई-पटाखा विक्रेता प्रवीण कुमार राणा ने बताया कि आम पटाखों की ब्रिकी बंद होने के बाद से ई-पटाखों की ब्रिकी तेज हुई है. उन्होंने बताया कि प्रतिदिन बहुत ज्यादा स्टॉक बिक रहा है. इन पटाखों के एक सेट की मूल्य 1500 रुपये है जो थोड़ी महंगी जरूर है.
उन्होंने बताया कि इससे पहले बाजार में जो ई-पटाखे मौजूद थे उन्हें रिमोट से कंट्रोल नहीं किया जा सकता था व उनसे एक बार में सिर्फ एक ही छोटा धमाका होता था, लेकिन इन पटाखों को एक रिमोट से बिना किसी अंतराल के कई बार लगातार चलाया जा सकता है. इनके इस्तेमाल के लिए ई-पटाखा लड़ी की प्लग सॉकेट में लगाना पड़ता है.
देश में पटाखों की बिक्री का सबसे बड़ा थोक
मार्केट दिल्ली का सदर
मार्केट है
. दीपावली से पहले हर
वर्ष सदर
मार्केट के 74 दुकानदारों को लाइसेंस मिलता है
. अकेले दिल्ली-एनसीआर में हर
वर्ष करीब 25 हजार करोड़ रुपये के पटाखे बिक जाते है
.
जीएसटी के दायरे में पटाखे
पटाखों को भी GST के दायरे में आ गई है. पटाखों को 28 प्रतिशत स्लैब में रखा गया है. पटाखे महंगे हो गए हैं. इससे पटाखों की बिक्री पर प्रभाव देखने को मिल सकता है. पूरे राष्ट्र में 1 हजार करोड़ रुपये का टर्नओवर केवल दीपावली पर होता है.
शिवकासी सबसे बड़ा गढ़
तमिलनाडु के शिवकासी से ही पूरे राष्ट्र में पटाखों की सप्लाई की जाती है. पटाखों के लिए शिवकासी को गढ़ माना जाता है. पूरे राष्ट्र में 85 प्रतिशत बिक्री यहीं से होती है. करीब 3 लाख लोग यहां पर पटाखे बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं. वहीं 5 लाख लोग सप्लाई व पेपर प्रिंटिंग से जुड़े हैं.