वर्किंग वूमन बच्चे को डे केयर में भेजने से पहले रखें इन बातों का ध्यान वरना…

नैनी, डे केयर या डे बोर्डिंग के चुनाव में सावधानी जरूरी है। इस समय में लिया गया सही निर्णय युवावस्था में सफलता के रास्ते खोलता है।प्रिया आज ऑफिस नहीं जा पाई। उसके बेटे के स्कूल में एक विदेशी डेलीगेशन आया हुआ है, जिस कारण प्राइमरी विंग की आज छुट्टी हो गई। प्रिया न चाहते हुए भी आज घर पर है, जबकि ऑफिस में उसके लिए कई महत्वपूर्ण कार्य थे। बॉस पहले ही अधिक छुट्टियां करने के कारण नाराज है। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे। उधर, गरिमा की बेटी भी उसी स्कूल में पढ़ती है, लेकिन उसे कोई टेंशन नहीं है। हालांकि गरिमा किसी ऑफिस में जॉब नहीं करती, लेकिन अपना छोटा सा कारोबार है।
प्रिया और गरिमा दोनों ही महानगरीय जीवन की आपाधापी का हिस्सा हैं, जो अपने-अपने तरीके से अपने किरदार निभा रही हैं। दोनों के कुछ सपने हैं, खुशिया हैं और कई तरह की मजबूरियां भी। महिला होने के नाते उन्हें घर-परिवार भी देखना पड़ता है। जहां प्रिया ने फैसला लिया एक आया रखने का वहीं, गरिमा को भरोसा नहीं कि कोई और उसके बच्चे की देखभाल उस तरह से कर सकती है, जैसे वह करती है। इसलिए उसने कोई आया नहीं रखी। पर अपने बच्चे का ख्याल, घर के काम और अपना कारोबार इन सब में गरिमा पूरी तरह थक जाती है। महिलाओं को यह समझना जरूरी है कि बच्चों के साथ उन्हें अपना ख्याल भी रखना चाहिए। बच्चों के बेहतर भविष्य में बाल आयु में दी गई शिक्षा और परवरिश बहुत अहम होती है।
अगर आप अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बच्चों पर निवेश करती हैं, तो यह आगे के लिए फायदेमंद होगा। इसलिए दिन में अपने काम से हटकर बच्चे के साथ अपने लिए समय निकालना जरूरी है। इसके लिए बच्चों की देखभाल के लिए आया या अच्छे किंडरगार्डन में उनका दाखिला करवा सकती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आपकी अपने बच्चे के प्रति जिम्मेदारी खत्म हो गई है। आपकी जिम्मेदारी थोड़ी बंट गई है। इससे आप अपने बच्चे के साथ थोड़ा लेकिन अच्छा समय बिता पाएंगी। लेकिन आया रखने या किंडरगार्डन में अपने बच्चे के दाखिले से पहले और बाद में भी समय-समय पर बात करती रहें। उसमें आने वाले बदलावों और दिनचर्या पर भी गौर करें।
बंगलुरु के सॉन्डर कनेक्ट की ट्रस्टी लथिका पाई कहती हैं कि बच्चों की देखभाल में निवेश करने के लाभ आपको आने वाले समय तक मिलते हैं। अपने अनुभव को बताते हुए उन्होंने कहा कि जब मैं जॉब करती थी और मुझे बच्चे की जिम्मेदारी निभानी पड़ती थी, तब मैंने अपनी बेटी की देखभाल के लिए एक आया को रखा। एक शोध बताता है कि आपकी आय का एक बड़ा हिस्सा अगर बच्चे की पढ़ाई और देखभाल में जा रहा है, तो इसमें संकोच न करें। यह आपके भविष्य का निवेश साबित होगा। शोध से पता चलता है कि जो बच्चे अच्छे किंडरगार्डन स्कूल में जाते हैं और पढ़ी-लिखी आया की निगरानी में बड़े होते हैं, वे बच्चे आगे चलकर ज्यादा स्मार्ट, ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा जिम्मेदार और जीवन में अधिक सफल रहते हैं। यह एक ऐसा निवेश है, जिस पर ज्यादा सोच-विचार नहीं करना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक जया मोहन मानती हैं, “बच्चों की देखभाल और पढाई-लिखाई पर किया गया खर्च एक तरह से निवेश ही है, जिस तरह से हम अन्य निवेश बड़ी सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से करते हैं, उसी तरह बच्चों की परवरिश पर भी अच्छी तरह से सोच-समझकर ही करना चाहिए। इसके फायदे आगे चलकर अवश्य मिलते हैं। मां, खासकर कामकाजी महिलाएं अपने बच्चे की तरफ से चिंतामुक्त हो जाती हैं। उनके अंदर जो अपराधबोध होता है कि वे अपने प्यारे बच्चे को घर पर अकेला छोड़कर जा रही हैं, उनकी अनुपस्थिति में वे कैसे रहेंगे, उससे ध्यान हट जाता है। बच्चे ग्रुप में रहते हैं, तो उनमें एक अनुशासन पैदा होता है। उनमें अपनी समस्याओं को सुलझाने की सोच विकसित होती है।
नतीजा, आगे चलकर ऐसे बच्चे अकादमिक के साथ साथ तन-मन से भी स्वस्थ रहते हैं। हां, इस बात का ध्यान माता-पिता जरूर रखें कि जो भी समय उनके पास बचे उसे पूरी तरह से अपने बच्चों के साथ जरूर बिताएं और नैनी अथवा डे केयर या डे बोर्डिंग का चुनाव करते वक्त उसकी साख और अन्य अभिभावकों से फीडबैक अवश्य ले लें, ताकि आपका बच्चा सही जगह जाए और आपका पैसा भी सही जगह खर्च हो।” जया मोहन घर पर आया रखने की बजाय डे बोर्डिंग को अच्छा मानती हैं। अच्छी देखभाल होगी तो बच्चे शारीरिक, मानसिक ही नहीं, बड़े होकर आर्थिक रूप से भी अधिक सुदृढ़ बनेंगे। उनमें बुरी आदतों के पनपने की आशंका नहीं रहेगी। कहने का मतलब यही कि बच्चों पर किया गया थोड़ा निवेश आगे चलकर बड़ा फायदेमंद हो सकता है।