मायावती ने खड़ी की कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबत!

इस वर्ष के अंत तक पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सबसे दिलचस्प मुकाबला मध्य प्रदेश में होने जा रहा है. यहां 15 वर्ष से सत्ता पर काबिज बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस पार्टी से है जो इस बार वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है. कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ  ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोडी़ को मैदान में उतारा है. ये दोनों नेता जबरदस्त मेहनत में जुटे हुए हैं. बीजेपी के विरूद्ध सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद कांग्रेस पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं.
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कांग्रेस पार्टी के लिए पहली बड़ी कठिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने खड़ी कर दी है. मायावती ने राज्य में अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर कांग्रेस पार्टी को हक्काबक्का कर दिया.मायावती ने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को निशाने पर लेते हुए बोला कि कांग्रेस-बसपा के बीच साझेदारी नहीं होने के लिए वही जिम्मेदार हैं. मायावती के इस दांव से फिल्हाल कांग्रेस पार्टी चित नजर आ रही है.

राज्य में चुनाव के लिए कुछ ही वक्त बचा है. कांग्रेस-भाजपा की ओर से ताबड़तोड़ रैलियों  जनसभाओं का दौर जारी है. कांग्रेस पार्टी की ओर से खुद राहुल गांधी ने कमान थाम ली है उनकी रैलियों का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है. बीजेपी पर राहुल  कांग्रेस पार्टी के तीखे हमले हो रहे हैं  मुख्यमंत्री शिवराज बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं. मायावती के दांव ने जबरदस्त ट्विस्ट पैदा कर दिया है जिससे मुकाबला  उलझ गया है.

भाजपा पर कई मुद्दे पड़ रहे भारी

फिल्हाल बीजेपी प्रतिकूल दशा का सामना कर रही है. कई मुद्दे उस पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा है एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा. इसे लेकर बीजेपी के कोर वोटर में ही उसके प्रति नाराजगी देखी जा रही है. जगह-जगह धरना प्रदर्शन हो रहे हैं  मुख्यमंत्री शिवराज को आलोचना झेलनी पड़ रही है. इसके अतिरिक्त किसानों की नाराजगी  एंटी इंकंबेंसी फैक्टर भी बीजेपी की राह कठिन करता नजर आ रहा है. सपाक्स का चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय भी बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होने जा रहा है. पूर्व आईएएस अधिकारियों का ये संगठन बीजेपी गवर्नमेंट से बेहद नाराज है  कई पूर्व ऑफिसर चुनावी मैदान में ताल ठोकने जा रहे हैं.

भाजपा के लिए राहत की खबर

हालांकि मायावती का रुख बीजेपी के लिए राहत भरी समाचार है. राज्य में बीएसपी का असर कई इलाकों में है. पिछले कुछ चुनावों में इस पार्टी ने 6 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए हैं जो इसे राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी बनाता है. कुछ समय पहले तक कांग्रेस पार्टी  बीएसपी के बीच गठजोड़ के कयास लग रहे थे लेकिन मायावती ने ऐन वक्त पर कांग्रेस पार्टी को झटका देकर उसकी रणनीति को बिगाड़ दिया है.

लेकिन क्या इससे बीजेपी को  इतना लाभ होगा कि वह लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी कर सके. इसके लिए हमें राज्य में वोटों का समीकरण समझना होगा. मध्य प्रदेश में दलित कुल आबादी का करीब 15 प्रतिशत है. दलितों की संख्या यहां 7 करोड़ 50 लाख है. दलितों के वोट का बड़ा भाग बीएसपी के खाते में जाता है  इसी वजह से मायावती यहां तीसरी ताकत बनी हुई हैं. अगर यहां एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा प्रभाव दिखाता है तो जितना नुकसान बीजेपी को होगा उतना ही लाभ बीएसपी  कांग्रेस पार्टी को होगा. लेकिन अगर ऐन वक्त पर बीजेपी से नाराज वोटर उसके ही पक्ष में वोट करता है तो उसकी वापसी तय है.

बसपा ने उतारे थे 227 उम्मीदवार
मध्य प्रदेश के 2013 के चुनाव में बीएसपी ने 230 सीट में से 227 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि उसे महज चार सीटों पर ही जीत मिली लेकिन उसका वोट शेयर 6.29 प्रतिशतरहा था. इसे बहुत ज्यादा अहम वोट शेयर माना जा सकता है. 2008 में बीएसपी को 8.97 प्रतिशत वोट  7 सीटें मिली थीं. जबकि 2003 में उसे 7.26 प्रतिशत वोट के साथ दो सीटें मिली थीं. यानि उसका वोट शेयर लगातार कम हो रहा है, लेकिन असर बना हुआ है. वर्ष 2013 में कांग्रेस पार्टी को 36.38 प्रतिशत वोट मिले थे  उसने 58 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी ने 44.88 वोट शेयर के साथ 165 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत के साथ गवर्नमेंट बनाई थी.

बसपा की सीटें  विधायक

दिम्बनी (मुरैना)- बलबीर सिंह डंडौतिया
अम्बाह (मुरैना)- सत्यप्रकाश सुखवार
रैगांव (सतना)- उषा चौधरी
मनगंवा (रीवा)- शीला त्यागी

अगर मायावती का वोट कांग्रेस पार्टी को ट्रांसफर हो जाता तो उसे जबरदस्त लाभ होता. लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल गई है. मायावती का रुख बीजेपी के लिए सुकून भरा साबित होने जा रहा है. 2013 में कांग्रेस-भाजपा के बीच वोटों का अंतर 8 प्रतिशत का रहा था. बीजेपी सत्ताविरोधी रुझान का सामना कर रही है. ऐसे में अगर बीएसपी का वोट कांग्रेस पार्टी को ट्रांसफर हो जाता तो तस्वीर बदल सकती थी. बहरहाल, चुनावी बिसात में कौन कौन सी बाजी खेली जानी है ये  देखना अभी बाकी है. चुनाव तारीख आते-आते कई बाजियां सजेंगी  कई बिगड़ेंगी. कौन किस पर भारी पड़ता है, ये देखना वाकई बेहद दिलचस्प होगा.