सर्दियों की दस्तक के बीच यूपी के विभिन्न शहरों की ‘प्राणवायु’ अब जहरीली होना प्रारम्भ हो गई है। राज्य के अधिकांश प्रमुख नगरों में आज हवा की गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिये ‘बहुत खराब’ आंकी गई है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक, यूपी के कानपुर, गाजियाबाद, लखनऊ, आगरा व बागपत समेत कई शहरों में प्रमुख प्रदूषणकारी तत्व पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की खतरनाक स्तर तक मौजूदगी रही। इनमें से कानपुर की स्थिति तो बेहद बेकार रही। राष्ट्र के टॉप-10 सबसे प्रदूषित शहरों में 8 यूपी के हैं।
सूचकांक के मुताबिक, उद्योग नगरी कानपुर में प्रदूषण का स्तर ‘बेहद खराब’ श्रेणी का रहा। यहां शाम पांच बजे पीएम 2.5 की मौजूदगी 400 से अधिक रही। गाजियाबाद भी ज्यादा पीछे नहीं रहा। यहां भी पीएम 2.5 का संघनन लगभग 400 ही रहा। बागपत की हवा भी ‘बहुत खराब‘ श्रेणी की रही। यहां पीएम 2.5 का संघनन औसतन 380 के आसपास रहा।
इसके अतिरिक्त नोएडा में शाम पांच बजे तक पीएम 2.5 का संघनन 379, हापुड़ में 371, बुलंदशहर में 360, मुजफ्फरनगर में 352, ग्रेटर नोएडा में 340, आगरा में 323, लखनऊ के लालबाग में 305, तालकटोरा औद्योगिक केन्द्र में 322, निशातगंज में 303 व सेंट्रल स्कूल में 284 रहा। यह सभी बहुत बेकार की श्रेणी में रहे।
मालूम हो कि पीएम 2.5 ऐसे महीने प्रदूषणकारी कण होते हैं जो हमारी रक्तवाहिकाओं में पहुंचकर गम्भीर बीमारियां पैदा करते हैं। हवा में पीएम 2.5 की मौजूदगी का 0-50 तक का स्तर स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित माना जाता है। यह स्तर 101-200 हो जाने से फेफड़ों तथा दमे की बीमारियों से जूझ रहे लोगों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। वहीं, पीएम 2.5 का स्तर 301-400 के बीच हो जाने पर ऐसी हवा के ज्यादा वक्त तक सम्पर्क में रहने से सांस की गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं।
सर्दियों के मौसम में हवा की गति कम हो जाने के बीच खेतों में पराली जलाये जाने तथा कई अन्य कारणों से हाल के सालों में इस समस्या ने विकराल रूप ले लिया है। वहीं, कानपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल उर्सला अस्पताल के सीनियर चिकित्सक व इंचार्ज डॉ शेलेन्द्र का कहना है कि इस प्रदूषण की वजह से व मौसम में परिवर्तन के चलते स्वास सम्बंधित मरीजों की संख्या में इजाफा हुवा है व आने वाले समय मे आकड़े बढ़ने की सम्भावना है।