जानिए पहली बार चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा भारत का ये यान

5 जुलाई को तड़के 02.51 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से इसरो करेगा चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण

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1 सितंबर को स्वदेशी ऑर्बिटर, लैंडर  रोवर के साथ चांद की सतह पर उतरेगा

लैंडर चांद की सतह पर दौरा करेगा  रोवर मिट्टी आदि के नमूने एकत्र करेगा

चंद्रयान-1 अभियान में हुई थी चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी की खोज

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के महत्वकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग में अब मात्र तीन दिन का समय बचा है. लगभग एक हजार करोड़ रुपये की लागत वाले इस मिशन को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) एमके- III रॉकेट से 15 जुलाई को तड़के 02.51 मिनट पर अंतरिक्ष में भेजा जाना है. इसके लिए सात जुलाई (रविवार) को श्री हरिकोटा के लॉन्च पैड पर जीएसएलवी मार्क तीन को स्थापित किया गया.

इसरो ने आठ जुलाई को अपनी वेबसाइट पर चंद्रयान की तस्वीरों को जारी किया. इसकी जानकारी देते हुए इसरो के अध्यक्ष चिकित्सक के सिवान ने भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) के सातवें दीक्षांत समारोह में बोला कि चंद्रयान-2 को प्रक्षेपण यान के साथ एकीकृत कर दिया गया है.

अगर चंद्रयान-2 से चांद पर बर्फ की खोज हो पाती है तो भविष्य में यहां इंसानों का प्रवास संभव हो सकेगा. जिससे यहां शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष विज्ञान में भी नयी खोजों का रास्ता खुलेगा. लॉन्चिंग के 53 से 54 दिन बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान- 2 की लैंडिंग होगा  अगले 14 दिन तक यह डेटा जुटाएगा.

भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला बनेगा पहला देश

के सिवान ने कहा, ‘चंद्रयान-2 के जरिए इसरो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया है. अगर हम उस जोखिम को लेते हैं तो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को फायदा होगा. जोखिम  फायदा जुड़े हुए हैं.‘ चंद्रयान छह या सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास लैंड करेगा. ऐसा होते ही हिंदुस्तान चांद की सतह पर लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा.

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंचती सूर्य की किरणें

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अब तक कोई भी देश नहीं जा सका है लेकिन अब यहां हिंदुस्तान अपने चंद्रयान- 2 को उतारकर इतिहास रचने जा रहा है. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की किरणे सीधी नहीं बल्कि तिरछी पड़ती हैं. इसलिए, यहां का तापमान बहुत कम होता है.

चांद के दक्षिणी ध्रुव के अधिकांश भाग पर अंधेरा रहता है. इसके अतिरिक्त यहां बड़े-बड़े क्रेटर भी हैं जिनके गढ्ढों का तापमान -250 डिग्री के आसपास पहुंच जाता है. इतनी ठंड में लैंडर  रोवर को ऑपरेट करना बड़ी चुनौती है. माना जा रहा है कि इन क्रेटर्स में जीवाश्म के अतिरिक्त पानी भी बर्फ के रूप में उपस्थित है.

चंद्रयान-2 के विशेष रोवर ‘प्रज्ञान’ के लिए कई तकनीक आईआईटी कानपुर में तैयार की गई हैं. इसमें सबसे अहम है मोशन प्लानिंग. मतलब चांद की सतह पर रोवर कैसे, कब  कहां जाएगा?

इसका पूरा खाका आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर प्रोफेसर केए वेंकटेश और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर प्रोफेसर आशीष दत्ता ने मिलकर तैयार किया है.

प्रो दत्ता के मुताबिक अंतरिक्ष यान का द्रव्यमान 3.8 टन है. इसमें तीन अहम मॉड्यूल हैं ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम)  रोवर (प्रज्ञान). आईआईटी ने इसके मोशन प्लानिंग सिस्टम पर कार्य किया है. चन्द्रयान-2 के चांद पर उतरते ही मोशन प्लानिंग का कार्य प्रारम्भ हो जाएगा. इसके अतिरिक्त यान के संचालन में ज्यादा खर्च न हो इसके लिए भी वैज्ञानिकों ने कार्यकिया है.

मिशन  चंद्रयान- 1 चंद्रयान- 2
लॉन्च की तारीख 22 अक्तूबर 2008 15 जुलाई 2019
लागत 386 करोड़ रुपये 978 करोड़ रुपये
वजन 1380 किलो 3877 किलो
भारत के लिए यह गौरव का बात है कि 10 वर्ष में दूसरी बार चांद पर मिशन भेज रहा है. चंद्रयान-1 2009 में भेजा गया था. हालांकि, उसमें रोवर शामिल नहीं था. चंद्रयान-1 में केवल एक ऑर्बिटर  इंपैक्टर था जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा था.