जानिए जई खाने से होते है ये सारे लाभ

जई यानी ओट्स एक अन्न है. इसकी खेती की तैयारी गेहूं  जौ की तरह ही की जाती है. यह जौ की प्रजाति का पौधा है. स्वास्थ्य के लिहाज से पौष्टिक होने के कारण धीरे-धीरे इसका उत्पादन बढ़ रहा है. लेकिन जागरूकता की कमी के कारण कम लागत में अधिक लाभ देने वाली इस फसल से किसान दूर हैं.


खेती का विज्ञान
ओट्स शरद ऋतु की फसल है. इसकी पैदावार के लिए ठंडी  शुष्क जलवायु की जरूरत पड़ती है. इसकी बुआई अक्टूबर में की जाती है. कम पानी में भी अच्छी उपज देने वाली यह फसल 40-110 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सरलता पैदा की जा सकती है. इसकी बुआई करते समय पर्याप्त नमीं की जरूरत होती है. यूपीओ-94, बुंदेल जई 581, हरियाणा जई 114 जई की उन्नत किस्में हैं. इसकी कटाई मार्च में की जाती है.

कई तरह से होता है प्रयोग
फसल की कटाई के बाद जई को कूटकर दाने  भूसी को अलग करते हैं. भूसी पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल होती है. जई के दानों को सेंककर मध्यम या दरदरा पीसते हैं जिसे स्टील कट ओट्स कहते हैं. इन्हें दलिए के रूप में प्रयोग करते हैं. इसे महीन पीसकर आटा तैयार करते हैं जिससे गेहूं के आटे में मिलाकर रोटी तैयार की जाती है. या फिर जई के दानों को भाप में पकाकर बेलन से चपटा करते हैं. इसे जई की खली (रोल्ड ओट्स) कहते हैं. इसे दूध में उबालकर खाया जा सकता है. जई का आटा बिस्किट बनाने में भी इस्तेमाल करते हैं. देश में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश  पंजाब में इसकी अधिक पैदावार होती है.

मुनाफे का गणित
धान  गेहूं की खेती के मुकाबले इसकी लागत बहुत ज्यादा कम आती है. इसकी पैदावार के लिए कीटनाशक  खाद का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है. इस कारण कम लागत में अधिकतम उत्पादन  मुनाफा हासिल किया जा सकता है. हिंदुस्तान में कई कंपनियों द्वारा इसका दलिया 150 से 200 रुपए प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराया जा रहा है जबकि मार्केट में जई के दानों का खुदरा मूल्य 20-25 रुपए प्रति किलो है. एक हेक्टेयर जमीन में 25-30 क्विंटल जई की पैदावार सरलता से हो जाती है.